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________________ ३६ म्हे दोष सेव्यां यांरै कदै जाण, यां सेव्यां री न कर ताण । कदे देतो हुं दोष बताय, जब म्हारी देता बात उडाय।। ३७ मो एकळा री आसंग नहीं कांय, तिण सूं रह्यो दोखीला माहि। जब यांनै पाछो कहिणो एम, थारो साधुपणो रह्यो केम।। ३८ थे तो डरता अकारज कीधो, तिण रो प्राछित पिण नहीं लीधो। कदाचित गुरु कांचा पाणी मंगावत, थे डरता थका भर ल्यावत ।। ३९ करावत पाप हर कोई, थे तो डरता करता सोई। कदा गुरु भारी पाप करता, तोही थे तो भेळा रहिता डरता ।। भागलां मांहै रहिता खूता, पिण थे एकळा कदेयन हूता। ईसडी थांरी गीदडाई, थेज थारा मुख सूं बताई।। ४१ इसडो प्राक्रम थां माहै पावै, थारी आगा सूं परतीत नावै। साधां नै डरतो मूळ नहीं रहिणो, दोष देख्यां सताब सूं कहिणो॥ ४२ डरतां न कह्या तो थे गीदड़ पूरा, हिवै किण विध होसो थे सूरा। एकळा होयवा सूं थे डरतै, दोष न कह्या लाजां मरते॥ ४३ तो हिवै ढांकोला दोष अनेक, जाणे होय जावां एक-एक। थारै तो मांहोमा दोष देख, हिवै तो ढांकसो थे विशेष। ४४ एकला होयवा रो डर थांनै, मांहोमां दोष राखसो छांनै। जो हिवै कहो म्हे न राखा छांनै, तो हिवै बात थांरी कुण मांनै ।। ४५ थे तो बैठा प्रतीत गमाय, थारी मूरख मानै वाय। जिम किण ही चोर रो हुआ उघाडो, फिट-फिट हुओ सैहर मझारो।। ४६ घणां लोकां जांणे लीयो तास, पछै कुण करै तिण रो विश्वास। ज्यूं थांरो पिण हूओ उघाड़ो, दोषीलां भेळो काढ्यो जमारो॥ ४७ प्रगट न किया त्यांरा दोख, थे जनम गमायो फोक । थाप रो एक दोष सेवै नित्य साध, तिण संजम दियो विराध ।। ४८ तिण नै गुरु जांण नै वांदै कोय, तो उ अनंत संसारी होय। तो थाप रा बहु दोष जांणो थे साख्यात, त्यांनै जांणे वांद्या दिन रात॥ ४९ तो थे पूरा अज्ञानी बाल, थे रुळसो कितो एक काळ। थाप रा एक दोष रो सेवणहार, तिण वांद्यां वंधै अनंत संसार।। ५० थे घणा दोष जाण्यां त्यां मांय, त्यांराइज वांद्या नित्य-नित्य पाय। भागलां वांद्या जांणे पायो, जिण मारग में ठागो चलायो।। ५१ रह्या थे कूड कपट माहै झूल, हिवै थारो होसी कुण सूल। जो थे गुर मांहि दोष बताया, घणा वर्स थे राख्या छिपाया।। लघु रास : ४०७
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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