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२५६ थारै लेखै साधु नै असाध बे मास, सरध्यां नवो चरण आवै तास।
गण नी श्रद्धा नै खोटी कह्यां ताय, थांनै नवो चरण इम आय॥ २५७ जो गण में छतां री श्रद्धा सुद्ध कैहणी, तो नवी दिख्या त्यांनै देणी।
रह्या साढा छ मास उपरंत, त्यां नै नवी दिख्या आवंत ।। २५८ ए सुध श्रद्धा जाणो सूत्र न्याय, तो नवी दिख्या यांनै आय।
ए श्रद्धा सुद्ध तो संभोग न करणो, असुद्ध जांणो तो थांनै उचरणो॥ २५९ थे नवी दिख्या यांनै नहीं दीधी, तथा पोते पिण नवीं न लीधी।
थे बहुविध न्याय निरणो नवी धास्यो,संभोग कियो अविचारयो।। २६० यां सूं नवी दिख्या विण संभोग कीधो, जग माहै अपजश लीधो।
- छठो अविनीत रही दिन दोय, जिहां हुँतो तिहां आयो सोय।। २६१ दंड ओढ आयो गण माहि, त्यांरा समाचार कह्या ताहि ।
जूं न्हांखवा री श्रद्धा छै यारै, घणो ढीलापणो छै तीनां रै।। २६२ पछै हूं गयो बीजा' चोथा रै ठिकाण, त्यां मुझनै कही इम वांण।
थे कांइ कीधो ए भागल भृष्टी, महा कपटी अन्याइ दुष्टी।। २६३ ऊतो शसण मोटो छै तसु छोडी, क्यूं आयो भागला में दोड़ी।
जू न्हाखवा री श्रद्धा छै यां रै, महा दगादार कपट्यां रै॥ २६४ जूंआं न्हांखै जिण नै म्हे कह्यां ताय, मांस गाय नो खाय।
इण विध यांसूं कहिणी आवै नांहि, तिण सूं क्यूं रहै तूं यां मांहि ।। २६५ यां तो चउरासी बोल पशूप्या दोष, पाछा सेळभेळ किया फोक।
त्यां मांहिला बोल घणां सेवै एह, त्यां में दोष पिण नहीं सरधेह ।। २६६ कै तो रहिणो उण शासण मांय, कै म्हारै सैमल होय जाय ।
कच्छ गुजरात में एकांत जाय, सारां आत्म कारज ताय।। २६७ इत्यादिक कही बहु विध वाय, जिण सूं पाछो आयो गण माय ।
हिवै अधिक अविनीत तीजो पंचम जांण, जै तीनूंइ भेळा पिछाण।। २६८ दूजो अविनीत नै चोथो बे भेळा, जुओ-जुओ संभोग न मेला।
तीजो अविनीत हरष ऋषि पास, काती सुदि चोथ कह्यो तास।। २६९ पंचपदां में घाल्यो नाम, दिवस घणै अभिराम।
घालतूं नाम बले हूं सदाई, प्रतीत हरष नै उपाई।। २७० बोल-चाल रो तो रह्यो नहीं कोय, थारै ज्यूं म्हारैइ होय।
ऋषि ज्ञान भणी कहै गुरु छै थारै, ते पिण गुरु छै म्हारै।।
३. संतोजी।
१. कस्तूर जी वापस गण में आ गए। २. जीवोजी।
लघु रास : ३९१