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________________ लिखित सं० १८४५ री जोड़(१) ढाल : ४ दूहा १ पैंताळीसै वर्ष स्वामजी, साधां रे सरस लिखत निसुणो सहु, आणी अति मरजाद। अहलाद ।। स्वाम भिक्खू वच सुखदाई रे। स्वा०। अखंड आण मरजाद अराध्यां शिवपुर नी साई॥ध्रुपदं॥ २. सर्व साधां रे मर्यादा-बांधी ते कहिये छे निसुणो छोड़ी विषवादा। कारणिक जाणो, आंख्यादिक गरढ गिलाणो, जद और साथ अगिलाणो। वियावच्च करणी हित ल्याई।। उण नै संलेखणा केरी, ताकीदी नहि देणी छै निज तन-मन नै घेरी। वधै वेरागो, करणो तिण रीत सुमागो, अति आणी हरष अथागो । वियावच्च करणी चित ल्याई।। ४ उण रे विहार करण नी रीतो, निजर कची है तास भरोसे ना रखणी नीतो। घणी खप करनै, तसु चलावणो पग भर नैं, आगल मारग अनुसरनैं। इसी विध चलणो हित ल्याई।। ५ रोगियो होवै तो तामो, उण रौ बोज उपाड़णो उण रा चढता परिणामोरहै ज्यूं करणो, उण में जाणो शुध चरणो, तसु छेहरे दे ना परहरणो। पवर ए रीत सुगुण भाई॥ हरष वैराग हियै आणी, संलेखणा मंडे तो पिण उण री व्यावच ठाणी। कदा इक जणो उचट होयो, त्यां सगलां नै रीत प्रमाणे करणी है सोयो। करै जो नाही, नखैद नै त्यां ही, करावणी ते पाही। करावै आप किसै न्याई।। ७ कारणीक रोगी नै लेणो, रीत प्रमाण आहार सहु भेळा हो कहै ते देणो। बलि किण ही रो, अजोग स्वभाव तिणी रो, बेठण वालो नहीं जिणी रो। तसु संग ले जावै नाहि॥ ८ तदा उ पैला नै ताहि, घणी परतीत उपाय घणी बलै करणी नरमाइ। जोड़ कर केणो, इसी विध वदणो वेणो, थे मोय निभावो सेणो। __कहि इम तसु साथै जाई॥ १.लय : महिल मन अन्तर की आडी रे। ३.किनाराकशी। २.परिश्रम पूर्वक। १४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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