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________________ ६० (२६) ६१ ६२ (२७) ६३ (२८) ६४ (२९) ६५ ६६ (३०) ६७ ६८ (३१) ६९ ७० ७१ (३२) ७२ (३३) ७३ ७४ ७५ मुहुंता, थयो असूझतो बहिरन्न । दिन्न || भाळ ॥ ए तीनूं कल्पे सही, नवा आया ने निहाळ । तसु बहिरयो बीजा भणी, कळपे मुनि दत्त विहार करे दूजे दिनें, विण भोगव्यां नवा त्यां पहिले दिन फरसिया, कल्पे आगला ने जगी || विहार कियो दूजे दिने, केइक मुनीश । नवा पिछाण । किण ही गामें अथवा पाछे नीपनो, तथा पर्थ्यो पहिले घर नो आहार ॥ नवा अणगार । आहार ॥ आय । इक नवा तिहां रह्या, नहि कळपे किण ग्रामे बहु मुनि हुंता, त्यां करी तठा पछे मुनि आविया, त्यां नहि पण तसु दीधूं भोगव्युं, दूजे दिन कळपे त्यां मुनिवर भणीं, त्यां फरस्या किण गामे बहु मुनि हुंता, बलि आया पछे करी आगला गोचरी, नवा न बहिर्य पिण तसु दीधो भोगव्यो, दूजे दिन आगला विहार । कळ त्यां मुनिवर भणी, त्यां फरस्या घर नो आहार ॥ किण गामे मुनिवर हुंता, नवा संत बलि चोविहार तप तेहनें, पिण ग्रहवा रो कल्प संत आगला रे तिके, नितपिंडादि त्रिहुं नवा संत आणे दियो, तसु दोष न दीसे भोगवण रा तसु त्याग छै, पिण ग्रहिवा रा नहि तिण सूं अन्य मुनि कारणे, बहिरे ते साध्वियां पर गांम थी, आहार उदक आ सिर खंध धर करी, ईर्या तथा साध ने साधवी, विहार गोचरी मांय । असणादि बिहुं कर ग्रहे, तो पिण दोषण नाय ।। पाछे बोल कह्या तिके, भिक्खु भारीमाल ऋषिराय । तसु बारे पिण रीत थी, तिण सूं दोष नहीं तिण मांय ॥ उगणीसै पनरे समे, विद फागण जयजश गणपति लाडणूं, कांइ जोड़ी सरस सुजाण ॥ दाल चतुर्थी नें विषे, कह्यो जीत ववहार सुजास । भिक्षु भारीमाल ऋषिरायथी, जयजश हर्ष विलास ॥ सहीत सुखदाय ॥ तीज पिछाण । ३५६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था सहु ने जाण ॥ गोचरी सार । आहार ॥ बहिरयो आगला विहार । जणाय ॥ जोय । कोय ॥ त्याग । महाभाग ॥ वत्थ ताय ।
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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