________________
४५ (२०) सहज कारण में भोगवे, नित्यपिंड औषध सार।
गोळी चूरण लवंग ने, हरडे झूठ उदार। अचित काली मिरच ने आंवला, कांई जीरो मेथी जाण। अजमो में आसाळियो, धाणा-लूण पिछाण।। नेत्र रक्षा रे कारण लिये, घृत ने मिरच बिदाम। आद देइ बहु जाणवा, गणि आणा सुं ताम।। वाय मेटवा ने लिये, कांई मेथी लकार' आदि। गरमी मेटण कारणे, माखण चरण-समाधि ।। अधिक कारण पच नित्य लियै, करवाली रंध आदि।
जीत ववहार भिक्षु तणों, तिण में नाहि उपाधि ।। (२१) किण ग्रामेबहु मुनि रहे, केइ राख्या पुर बार।
उत्कृष्ट बे कोस लगे सही, तास गोचरी न्यार।। इक-इक नित्य बोलाय ले, घर फरसावण काज। तो पिण दोष दीसे नहि, कळप जू जूओ साज। मास कळप बारै रहे, मास रहे पुर मांय।
कळप एह पर गाम ज्यूं, तिण सूं दोषण नाय।। ५३ (२२) किण गामे बहु मुनि रहे, केइ राख्या पुर बार।
पुर रहे ते घर फरसता, थयो असूझतो तिण वार ।। पुर बाहिर थी बोलाय ले, तथा अपर गाम थी सोय।
तो पिण दोष दीसे नहीं, जुदी गोचरी जोय। (२३) बिहार करी बहु मुनिवरू, केइ आया पुर माय।
बहिरता त्यांरे हुवो, असूझतो घर ताय।। पूठे मुनि पर गाम नी, अथवा ते पुर बार।
करी गोचरी आविया, तसु ते घर कळपे सार। (२४) त्यां बीच गोचरी नां करी, घर असूझतो जेह।
पुर आया कळपे नहि, साथ विहार करेह।। ५८ (२५) साथ विहार धुर सूं कियो, केइ मुनि रयाज लार।
केइक पुर बाहिर रह्या, नहि करी गोचरी सार।। केइक पहिलां गाम में, करी गोचरी आय। पछे नीपनो आहार ते, पछला ने कळपे नाय।।
३. दलिया आदि।
१. लड्डू २. रोटी
पंरपरा नी जोड़ : ढा०४ : ३५५