________________
१२३ दूध सूं रोटी मसळणी नहीं)
११४ रोटी घी स्यूं चूरे तथा दूध में मसळे, सहजे खांड आयां घाले खीर रे मांय । कारण बिना विगय तरकारी, मांगी नें नहीं ल्यावे ऋषिराय ॥
(१२४ किवाड़ जडे जठै रहै)
११५ किंवाड जडे तठे साधु रहे तो, लघु बड़ी नीत री जायगां मांहि होय । तो साधु नै दोष कोइ मत जाणो, मुनि किंवाड जडै उघाडे नहीं (१२८ दोय साधां नें न रहिणो चौमासा मांहै।
कोय ॥
१२९ तीन आय नें १३४ नसीत वाच्यां
न रहिणो चोमासा मांहै। विना चौमासो करै)
११६ दोय साधु तीन आर्यां ने, सेखे
चोमासे कल्पे
ताम ।
नशीथ वांच्या बिन संत सत्यां नें, दोय रात्रि उपरंत नहीं रहणो एकण गाम ॥ (१३० आर्या ने आडो न जड़णो कवाड़)
११७ ताळो किवाड़ जयणां सूं खोलायां,
आर्यां उतरे अवलोय | पोते पण खोले तो दोष नहीं छै, कूंची असूजती न मंगावणी कोय ।। ११८ साधु पिण साधवियां रे काजे, ताळो खोले तो दोष न कहणो ।
शीळ राखण श्रमणी किवाड़ जड़ै छै, कवाड़ न हुवै तो पछेवड़ी बांधी ने रहणो ॥ (१३८ गाम में धोवण पाणी वहिर नें विहार कीधो पाछो आवै तो त्यांरी वेहरणो नहीं) ११९ धोवण पाणी बहिरी विहार कीधो छै, पूठो आवे तो ते घर रो आहार । पछे नीपनो ते पिण लेवे, दूजे दिन आयां तो नहीं लेणो लिगार ॥ १२० विहार करंता आहार पाणी लेवे छै, असूझतो घर हुवै तिणवार । पाछो आवे तो ते घर रो न लेणो, बुद्धिवंत न्याय सूं लीज्यो विचार ॥ १२१ रात्रि साधु सती जे ग्राम रह्या छै, आहार बहिरयां तथा अणबहिरया सोय । पर गाम गोचरी जइ पाछा आवे तो, पाछे रह्यां री रीत ज्यूं यांरी पिण होय ॥ (१३९ ईर्या जोवतो वहरावण आयो पाछो जातो अजैणा करे तो वहिरणो नहीं) १२२ ईर्ष्या जोवतां बहिरावण आयो, पाछो जावतां जो करे अजयणां । तिण ने असूझतो हुवो किम कहिजे, बहिरावतां अजयणा करे तो नहीं लेणा ॥ १२३ रूपचंदजी ने अखेरामजी, स्वामी भीखणजी में काढ्या दोष । त्यां माहिला बहु बोलां रो उत्तर, सांभळ धारज्यो आण संतोष ॥ १२४ स्वाम भिक्षु दोयां ने समझावी, प्रायश्चित देइ लिया गण मांय । यां मांहिला कोई दोष बतावे, ते विवेक रा विकळ कहीजे १२५ सुध ववहार नी दाळ तीजी ए, भिक्षु भारीमाल ऋषिराय उगणीसे परे तीज सुद मगसर, जयजश गणपति संपति
ताय ॥
प्रसाद ।
लाध ॥
पंरपरा नीं जोड़: ढा० ३: ३५१