________________
७ बायां ने सीखायां दोष नहिं छै, सेवा करायां पिण दोष नहीं है।
नवमे शतक भगवती एकतीसमें उद्देशै, सेवा करवा वाली ने उपासका कही है। ( ९ आयर्या ने थानक में बेसाणणी नहीं। १० आयाँ सूं चरचा करणी नहीं। ११ आयाँ नें सूतर री वाचणी देणी नहीं। १२ आर्या साह्मो जोवणो नहीं। १३ कारण विना आर्या ने आहार देणो नही। १४ वैतकल्प में जाबक आयाँ नें साधां रे थानक वरज्या छै. १७ बोल।
इम साधु ने पिण १७ बोल आया रे थानक वरज्या) । असझाइ में आया ने साधु, सूत्र बंचावै कह्यो ववहार। आहार भोगवणो ने बेसणो चाल्यो, सातमे उद्देशै बहु विस्तार।। वृहत्कल्प में सतरे बोल वा, 'ते विकट' बेळा' अर्थ मांहि पिछाणो।
ववहार पाठ में आगन्या दीधी, तिण सूं विकट वेळा रो अर्थ सुध जाणो। १० सतरे बोलां में ऊभी रहिणी पिण वर्जी, ते विकट वेळा संध्या पक्ष्यां कहाय।
तिण वेला सझाय आहार न कळ्पे, संलग्न सतरे बोल कह्या जिनराय। ११ ऊभो रहिवो बेसवो सूयवो', निद्रा विशेष निद्रा' चिहुं आहार।
बड़ी लघु नीत बलखो१२ सेडो१३, सझाय४ काउसग्गपडिमा विचार॥ १२ विकट बेळा सतरे बोल न करणा, विकट बेला विण दोषण नांय ।
केयक बोलां री आज्ञा पाठ में, केयक बोल त्यांरी अपेक्षाय॥ १३ साधु रे स्थानक साध्वी आहार भोगवै, ए पिण ववहार सातमा उद्देशा माय।
ते ऊभी रह्यां विण आहार करे किम, विकट वेळा रो अर्थ साचो इण न्याय॥ १४ दशाश्रुतस्कंध दसमें अध्ययने, श्री वीर तणा समोसरण मझार ।
साध साधवियां नियाणा कीधा, त्यांने श्री जिन सुध किया तिणवार।। १५ आा ने आहार देणो पिण चाल्यो, चोथे ठाणे दूजा उद्देशा मांय।
ऊभो रह्यां विण आहार दीयै किम. विकट वेळा रो अर्थ साचो इण न्याय॥ १६ साधु ने संभोगी' कह्या छै, सातमे उद्देशै सूत्र ववहार।
आहार मांहोमां देवै लेवे ते संभोगी, ऊभो रह्यां विण किम लियै-दियै आहार।।
१. भगवई३१९ २. ववहार सुत्तं ७।१९ ३. ववहार सुत्तं ७।३ ४. कप्पसुत्तं
५. सूर्यास्त के बाद ६. ववहार सुत्तं ७।३ ७. दसासुयक्खंधो १०।२२,३४ ८. ठाणं २।२७४ ९. ववहार सुत्तं ७।३
पंरपरा नी जोड़ : ढा०३ : ३४१