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४१ चेला रो मन भांगे गुर थकी, गुर रो चेला सूं दे मन भांग।
यां नै भेद घाली न्यारा करै, तिण पैर बिगाड्यो सांग। ४२ गुर मोटा उपगारी मुगत रा, त्यां सूं दूर करै भरमाय । - जीवै ज्यां लग भैळा हुवै नहीं, एहवी मोटी देवै अंतराय।। ४३ गण मांहि वसै साध-साधवी, त्यां में पाड़े विषेरो कोय।
चित्त भंग करै यां रो एहवो, कदै फेर मिलाप न होय।। ४४ साधवी गण सूं फाड़ नै, आप रा कर राखै ताहि। गुर सूं छान-छानै बांधे जिलो, मूर्ख चोरी करै गण माहि॥
इम भेद पाहै, जिलो बांधे, तिण नै घणो निषेध्यो छै। तथा पैंताळीसा रा लिखत में कह्या-टोळा मांहि कदाच कर्म जोगे टोळा बारै पड़े तो टोळा रा साध-साधवियां रा अंसमात्र अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै। यां री अंसमात्र संका पडै आसता ऊतरे ज्यूं बोलण रा त्याग छै। टोळा मां सूफार नै साथै ले जावण रा त्याग छै। उ आवै तो ही ले जावण रा त्याग छै। टोळा माहै नै बारै नीकळ्यां पिण ओगुण बोलण रा त्याग छै। इम पैंताळीसा रा लिखत में कह्यो। ते भणी सासण री गुणोत्कीर्तन रूप बात करणी। भागहीण हुवै सो उतरती बात करै, तथा भागहीण सुणे, तथा सुणी आचार्य नै न कहै ते पिण भागहीण। तिण नै तीर्थंकर नो चोर कहणो, हरामखोर कहणो, तीन धिकार देणी।
आयरिए आराहेइ, समणे यावि तारिसो। गिहत्था विणं पूयंति, जेण जाणंति तारिसं॥ आयरिए नाराहेइ, समणे यावि तारिसो। गिहत्था वि णं गरहंति, जेण जाणंति तारिसं।।
इति 'दशवैकालिक में कह्यो ते मर्यादा आज्ञा सुद्ध आराध्यां इहभव पर भवे सुख किल्याण हुवै।
ए हाजरी रची संवत् १९१४ रा मृगसर सुध १४
१.दसवेयालियं, ५/२/४५/४०
पच्चीसवीं हाजरी : ३१५