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बीसवीं हाजरी
पंच सुमत तीन गुप्त पंच महाव्रत अखंड आराधणां। ईर्त्यां भाषा एषणा में सावचेत रहिणो। आहारपाणी लेणो ते पक्की पूछा करी नै लेणो । सूजतो आहार पिण आगला रो अभिप्राय देख नै लेणो। पूजतां परिठवतां सावधानपणे रहणो। मन वचन काया गुप्ति में सावचेत रहिणो। तीर्थंकर नी आज्ञा अखंड आराधणी। श्री भीखणजी स्वामी सूत्र सिद्धान्त देख नै श्रद्धा आचार प्रकट कीधा-विरत धर्म, अविरत अधर्म। आज्ञा मांहे धर्म, आज्ञा बारे अधर्म। असंजती रो जीवणो बंछै ते राग, मरणो बंछे ते द्वेष, तिरणो बंछे ते वीतराग देव नो मार्ग छै। तथा विविध प्रकार नी मर्यादा बांधी।
सवंत् १८३२ लिखत में एहवो कह्यो-सर्व साध-साधवी भारमल जी री आज्ञा मांहे चालणो। शेषे काळ विहार चोमासो करणो ते भारमलजी री आगना सूं करणो। विना आगन्या कठे इ रहिणो नहीं। दिख्या देणी ते पिण भारमलजी रे नामे देणी। दिख्या दे ने आण तूंपणो। चेला री कपड़ा री साताकारिया खेतर री इत्यादिक अनेक बोलां री ममता कर नै अनंता जीव चारित गमाय नै नरक निगोद मांहे गया छै। बलै भेषधास्यां रा एहवा चेह्न देख्या छै। तिण सूं सिखादिक री ममता मिटावण रो नै चारित्र चोखो पाळण रो उपाय कीधो छै। विनै मूल धर्म नै न्याय मारग चालण रो उपाय कीधो छ। भेषधारी विकलां नै भेळा करै, ते शिषां रा भूखा, एक-एक रा अवर्णवाद बोले, फारा-तोरो करै, माहोमां कजिया राड़ झगड़ा करै। एहवा चरित्र देख नैं साधां रे मरजादा बांधी छै। शिख साखा रो संतोष कराय नै सुखे संजम पाळण रो उपाय कीधो छै। साध-साधव्यां पिण इमहीज कह्यो-भारमलजी री आगना माहे चालणो। सिष करणा ते सर्व भारमल जी रे करणा। ओर रे चेला करण रा त्याग छै, जावजीव लगै। भारमलजी पिण चेलो करै ते पिण बुधवंत साध कहै-ओ साधपणा लायक छै, बीजा साधां नै परतीत आवै तेहवो करणो, परतीत नहीं आवै तो नहीं करणो। कीधा पछै कोइ अजोग हुवै तो पिण बुधवंत साधां रां कह्या सूं छोड़ देणो। किण ही धेषी रा कह्या सूं छोड़णो नहीं। नव पदारथ ओळखाय नै दिख्या देणी। आचार पाळा छां तिण रीते चोखो पाळणो। इण आचार मांहे खांमी जांणे तो अबारूं कहि देणो, पण माहोमां ताण करणी नहीं। किण ही नै दोष भ्यास जाय तो बुधवंत साध री परतीत कर लेणी, पिण खांच करणी नही। भारमलजी री इच्छा आवै जद गुर भाइ अथवा चेला नै टोळा रो भार सूंपे जद सर्व साध-साधव्यां उण री आगन्या माहै चालणो, एहवी रीत परंपरा बांधी छै। सर्व साध-साधवी रो मार्ग चाले जठा तांइ। कदा कोइ उसभ कर्म रे जोगे टोळा मां सूं फारा तोरो कर नै एक दोय तीन आदि नीकळे। घणी धुरताइ करै। बुगलध्यानी हुवै। त्यां नै साध सरधणा नहीं। च्यार तीर्थ मांहे गिणवा २८८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था