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भारी प्राछित जिण आर्यां साथे मेली तिण आर्यां भेळी रहे। अथवा सेषेकाळ भेळी रहै अथवा चोमासो भेळी रहे त्यां रा दोष ह्वे तो साधां सूं भेळा हुआ कहि देणो। न कहै तो उतरो प्राछित उण नै छै। पछै घणां दिन आडा घालनै कहै तो साचो कहै तो झूठो कहै तो उवा जाणे, के केवली जाणे, पिण छदमस्थ रा ववहार में तो घणां दिनां री बात उदीरे, राग-धेष रे वस आप रे स्वार्थ उदीरे, स्वार्थ न पूगां उदीरे, तिण री परतीत मानणी नहीं आवै। ग्रहस्थ मांहे आमना जणाय नै माहोमांहि एक-एक री आसता उतारे तिण में अवगुण घणाइ ज छै। बलै फतूजी नै मांहि लीधी तिको लिखत सगली आ· नै कबूल छै। बलै अनेक-अनेक बोलां री करली मरजादा बांधे ते कबूल छै। ना कहिण रा त्याग छै। बलै कर्म जोगे किण ही सूंइ आचार-गोचार न पळे, माहोमा स्वभाव न मिलै, तिण नै साध टोळा बारै काढ़े अथवा क्रोध वस टोळा थी अळगी परै। तिका तो कर्मा रे वस अनेक झूठ बोले। कूड़ा-कूड़ा आळ दे। अथवा भेषधास्यां माहे जाये तिण तो अनंत संसार आरै कीनो ते तो अनेक विवध प्रकार रो झठ बोलेइज। काइक नहीं पिण बोले एहवी भेषभंडारी तो बात भेषधारी भारीकर्मा माने, पिण उत्तम जीव न माने। टोळा सूं छूट न्यारी हुवै री बात माने त्यां नै मूरख कहिजे, त्यां नै चोर कहीजे। ते तो अनेक-अनेक आल दे सूंस करण नै त्यारी हुवै तो ही उत्तम जीव तो न माने इत्यादिक अवगुण घणां छै। टोळा मांहे सूं पिण टळ्यां पछै टोळा रा अवगुण बोलण रा अनंता सिद्धारी साख सं पचखांण छै। ए लिखत सगळी आल् नै वंचाय नै पहिला कहवाय नै मर्यादा बांधी छै। ए लिखत प्रमाणे सगळी आर्यां नै चालणो। अनंता सिद्धां री साख सूं सगला रे पचखांण छै। जिण रा परिणाम चोखा हुवै, लिखत प्रमाणे चाले, ते मतो घालजो। सरमासरमी रो काम छै नहीं, जावजीव रो काम छै । सवंत् १८३४ रा जेठ सुदि ९।
हेठे आर्यां रा अक्षर लिख्योड़ा छै। एहवो चोतीसा रे वर्स आर्यां रे लिखत कियो, तिण में कह्यो-फतजी नै मांहि लीधी तिको लिखत सगळी आल् रे कबल छै। तिण फतजी रा लिखत में कह्यो-साधां री इच्छा आवै जुदो विहार करावण री ओर आ· साथे जुदी-जुदी मेले तो ना कहिणो नहीं। ए आठमो बोल कह्यो छै। तिण लेखे आचार्य श्री इच्छा आवै तो सिंघाड़ो राखे, इच्छा आवै तो जुदी -जुदी मेले, सिंघाड़ो न राखे, तो पिण ना न कहणो, एहवो कह्यो।
तथा साध-साधव्यां रो चणो दोष प्रकृतादिक ओगुण हुवै तो गुरां ने कहिणो, पिण ग्रहस्थां आगै कहणो नहीं। ए नवमा बोल में कह्यो। ए पिण मर्यादा सर्व आर्यां रे जाणवी।
आहारपाणी कपड़ादिक में साधां रे लोळपणां री संका उपजे तो साधां नै परतीत उपजे ज्यूं करणो ए दसमो बोल कह्यो। ए पिण सर्व मर्यादा सर्व आर्यां नै जाणवी। अमळ तमाखू रोगादिक कारण पड़यां लेणो पिण विसन रूप लेणो नहीं। लीया इ सजे ज्यूं करणो नहीं। ए इग्यारमो बोल कह्यो। ए पिण मर्यादा सर्व आर्यां रे जाणवी। कारण विनां तो अमल तमाखू लेणो नहीं। कारण सूं लेवे ते पिण गुरु आज्ञा री बात न्यारी। बलै सर्व साधव्यां नै आचार गोचार माहे ढीळा पड़ता देखे अथवा संका पड़ती जांणे, जद सर्व समचे सर्व साध-साधवियां री करली मर्यादा बांधे तो पिण ना कहिणो नहीं। इत्यादिक सीखावण चारित्र संघाते अंगीकार कर लेणी, ते जावजीव पचखांण छै। ए बारमो बोल पिण मर्यांदा सर्व आर्यां रे जाणवी। ए बारमा बोल रे लेखे आचार्य करड़ी मर्यादा बांधे, तिण री पिण भीखणजी स्वामी आज्ञा दीधी। ते करली मर्यादा सर्व आर्यों ने कबूल करणी, पिण ना कहिणो नहीं। २८६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था