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आयारिए आराहेइ, समणे यावि तारिसो। गिहत्था विणं पूयंति, जेण जाणंति तारिसं।।
आयरिए नाराहेइ, समण यावि तारिसो। गिहत्था वि णं गरहंति, जेण जाणंति तारिसं।।
इति 'दशवैकालिक में कह्यो ते मर्यादा आज्ञा आराध्यां इह भव पर भवे सुख कल्याण हुवै।
ए हाजरी रची संवत् १९१० जेठ विद १४ वार वृहस्पति बगतगढ़ मध्ये।
१. दसवेआलियं, ५।२।४५,४०
अठारहवीं हाजरी : २८३