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१४ बांध्यो काळ्या री पाखती गोरियो, वर्ण न आवै पिण लखण आवै।
ज्यूं विनीत अवनीत भेळा रहे, तो उ कायक कुबधि सीखावै।। १५ अवनीत दुखदाइ के हवो, जेहवो सोक वरते दुःखदाइ।
ते छ ळछिद्र जोवतो रहै, खुद्र परिणांमा रहै सदाइ ।। १६ ज्यूं सोक रा सोक लोकां कनै, करै चावत नै बंछै घात ।
ज्यूं अवनीत वरते गुर थकी, आहीज रीत विख्यात ।। १७ कोई जात कुजात री ऊपनी, भरतार सू लहै रीसावै।
पछै ताके कुवो के बावड़ी, ओर साथे उठ जावै रे ।। १८ ज्यूं अवनीत गुर सूं रूठो थको, करै संलेखणां मांडे मरणों।
मरणो अवनीत नै दोहिलो, तिण सूं ताके अवरां रो सरणो॥ १९ तिणरो संथारो ज्यूं कुवो बावड़ी, तिण सूं मरै तो ही बाल मरणो।
ओर साथे उठ जाय अस्त्री, ज्यूं ओ अवीनै रो ले सरणो।। २० २सोर ठंडो लागै मुख में घालियां, अगन मांहि घाल्यां हुवै तातो।
ज्यूं अवनीत नै सोर री ओपमा, सोर ज्यूं अळगो पड़ जातो॥ २१ आहारपांणी वस्त्रादिक आपियां, सतो उ स्वांन ज्यूं पूंछ हलावै।
करड़ो कह्यो उठे सोर अग्नि ज्यूं, गण छोड़ एकल उठ जावै॥ २२ सोर आप बळे बाळे अवर नै, पछै राख होय उड़ जावै।
ज्यूं अवनीत आप नै पर तणां, ज्ञानादिक गुण गमावै।। २३ सोर सोरीगर रा घर थकी, लोक बुधवंत रहसी दूरा।
ज्यूं अवनीत सूं अळगा रहे, तिके परमेसर रा पूरा॥ २४ उतराध्येन पेहला अध्येन सूं, अवनीत ओळखायो।
बलै तिण अनुसारे निषेधियो, ते ले ले सूतर नो न्यायो। इम विनीत री चोपी री तीजी ढाळ में भीखणजी स्वामी ओळखायो। तथा पैंताळीसा रा लिखत में एहवो कह्यो टोळा मांहे कदा टोळा बारै पड़े तो टोळा रा साध साधवियां रा अंसमात्र अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै। यां री अंस मात्र संका पडै आसता ऊतरे ज्यूं बोलण रा त्याग छै। टोळा मांसूं फार नै साथै ले जावा रा त्याग छै। उ आवै तो ही ले जावा रा त्याग छै। टोळा मांहे न बारै निकळ्यां पिण अवगुण बोलण रा त्याग छै। माहोमांहि मन फटै ज्यूं बोलण रा त्याग छै। इम पैंताळीसा रा लिखत में कह्यो। ते भणी सासण री गुणात्कीर्तन रूप बात करणी। भागहीण हुवै सो उतरती बात करै। तथा भागहीण सुणे, तथा सुणी आचार्य नै न कहै ते पिण भागहीण। तिण नै तीर्थंकर नो चोर कहणो, हरामखोर कहणो, तीन धिकार देणी।
३. गर्म
१. पास में। २. कलमी शोरा।
सत्रहवीं हाजरी : २७७