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________________ बायां भारत रो तुरत जणाय जो । आगो काढो तो थांरे घणो घणो क जियो दसै छै । फूलांजी ! गुमांनांजी ! थे पाधरा न चालीया तो थां रो वसेष फितूरो ह्वे तो दीसै छै। तिण सूं थे घणां सावधान रहीजो। जेठ सुदि १५ पछै फूलांजी नै गुमानांजी रै सुखड़ी रो आगार छै। मेणांजी रे साधां सूं भेळा हुवे जद साध आगन्यां देवे जद आगार छै-चोपड़ी रोटी सुंखड़ी रो । मेणांजी री पड़िलेहण धनांजी गुमांनांजी थे दोनूं जणा वारियां - सारियां करणी, हर कोइ काम वारियां सारियां करणो ओर आय मांदी ताती हुवै तिण नै गोचरी उठावणी नहीं। पछै उण आगां सूं कराय लेणो । पिण मांदी आगां सूं का काम करावणो नहीं । उण रो पिण काम साजी हुवै त्यां कनै रावणो । हिवै फूलांजी रै बोल न्यारो - फूलांजी नै गोचरी जाबक उठावणी नहीं । लिगार मात्र काम भळावणो नहीं। फूलांजी री तरफ गाढ़ी साता हुवै तो फूलांजी रै दाय आवे तो करसी। बीजी आर्य्यां ने यूं कहणो नहीं - 'थे करो नही कांम' फूलांजी री सेवा भगति करणी हुवै तो फूलांजी ने राखजो । फूलांजी री सगत हुसी तो मन होसी तो करसी। फूलांजी रा दिन परता छै, तिण सूं ए करार कीधो छै । आसंग हुवै तो राखजो। नहीं तर परी ले जावां । कोइ फूलांजी नै मेणांजी नै यूं कहे - 'म्हे थांने बेठी नै खवारां छां' इसी आमनां पिण जणावे, तिण नै तेलो प्राछित, कै जेती वार तेला । मेणांजी रै सूखड़ी रा त्याग सर्वथा - लापी सीरादिक रा । साधां सूं भेळा हुवै जठा तां धनाजी रै छै ज्यूं । जेठ विद ६ । अथ इहां भीखणजी स्वामी मेणांजी आंख्यां रा कारण सूं गोगूंदे रह्यो, त्यां री खांमी मेटवा इसड़ी बंधवस्ती कीधी । तो पिण साधपणो पालवा री दिष्ट तीखी राखी पण मर्यादा लोपी नहीं। अनै दुष्ट आत्मा रो धणी अविनीत अजोग तिण रो स्वार्थ अणपूगां किंचत कष्ट थी टोळा बारे नीकळी भीखणजी स्वामी री मर्यादा लोपी सूंस भांगी अवर्णवाद बोले, निरलज नागड़ो होय जावे, परम परम उपगारी गुर सम्यक्त चारित्र पमायो सूत्र भणाया ते कीधो उपगार ते सर्व भूल नै कृतघन होय जाय, मन म खोटी परूपणा करे, सर्व साधां नै असाध सरधावै, ते ऊपर भीखणजी स्वामी कही ते गाथा - वनीत अवनीत री चौपी मांहिली- १ १. लय-बूढो करतो । २५८ ते तो गुर सूं पिण नहीं गुदरे, त्यां रा कारज किण विध सुधरे। तिनै करे टोळा सूं न्यारो, तो उ चोर ज्यूं करै बिगाड़ो || डिग - डिग तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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