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________________ चौदहवीं हाजरी ___ पांच सुमति तीन गुप्ति पंच महाव्रत अखंड आराधणा। ई· भाषा एषणा में सावचेत रहिणो। आहार पाणी लेणो ते पक्की पूछा करी नै लेणो। सूजतो आहार पिण आगला रो अभिप्राय देख नै लेणो। पूजतां परठवतां सावधानपणे रहणो। मन वचन काया गुप्ति में सावचेत रहणो। तीर्थंकर नी आज्ञा अखंड आराधणी। भीखणजी स्वामी सूत्र सिद्धान्त देख नै श्रद्धा आचार प्रगट कीधा-विरत धर्म ने अविरत अधर्म , आज्ञा मांहे धर्म, आज्ञा बारे अधर्म। असंजती रो जीवणो बंछे ते राग, मरणो बंछे ते द्वेष, तिरणो बंछे ते वीतराग देव नो मार्ग छै। तथा विविध प्रकार नी मर्यादा बांधी। तथा संवत् १८५० रे वर्स तथा ५२ रे वरस आर्यां रे मरजादा बांधी। तिणमें कह्यो-किण ही साध आर्यों में दोष देखे तो दोष रा धणी ने कहणो तथा गुरां ने कहणो। पिण ओर किण ही आगे कहणो नहीं। किण ही आर्यां जांण ने दोष सेव्यो हुवे तो पांना में लिख्यां विना विगै तरकारी खाणी नहीं। कोइ साधु-साधवियां रा ओगुण काढ़े तो सांभळण रा त्याग छै। इतरो कहणो 'स्वामी जी ने कहीजो' जिणरा परिणाम टोळा में रहिण रा हुवे ते रहिजो। कपट ठागां तूं मांहे रहिवा रा त्याग छै। टोळा बारे हवां पछै साध-साधवियां रा अवगण बोलण रा त्याग छै। अनंता सिद्धां री साख करने त्याग छै। तथा चोतीसा रे वर्स आर्यां री मर्यादा बांधी-टोळा रा साध आर्यां री निंद्या करे तिण ने घणी अजोग जाणणी। तिण ने एक मास पांचू विगैरा त्याग छै। जितरी बार करै जितरा मास पांचू विगै रा त्याग छै। तथा पचासा रा गुणसठा रा लिखत में कदाच कर्म धक्को दियां टोळां तूं टळे तो टोळा रा साध-साधव्यां रा अंसमात्र हुंता अणहुंता अवगुण बोलण रा त्याग छै। टोळा नै असाध सरधने नवी दिख्या लेवे तो पिण अठी रा साध-साधव्यां री संका घालण रा त्याग छै। उपगरण टोळा मांहे करे ते, परत पांना लिखे जाचै ते, साथे ले जावण रा त्याग छै। इण सरधा रा भाई बाई हुवै जिण क्षेत्र में एक रात उपरंत रहिणो नहीं। ए मर्यादा उत्तम जीव हुवै ते लोपे नहीं। अवनीत नै निषेध्यां गुणग्राही तो राजी छै। उंधी प्रकृति वाला ने ऊंधो सूझे, ते द्वेष जाणे, 'सांनीयां'नै' दूध मिश्री संवली न परगमे। आगे भीखणजी स्वामी पिण किण ही री प्रकृति री खामी जांणी, तिण री खोड़ मिटावा अनेक बंधवस्ती कीधी। मेणांजी रे आंख रो कारण ते गोगूंदे हुंता त्यां ऊपर भीखणजी स्वामी कागद लिख्यो सिथलपणो जाण्यो ते मिटावा अर्थे कागद भिक्षु री हाथ अक्षरां रा देखादेख लिखिये छै १. सन्निपात में आये हुए को। २. सही। २५६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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