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________________ १५ घणां जीवां रे घालेला संक, लगावे ला मिथ्यात रो डंक। ओ तो भारी अकारज मोटो, इसड़ो मन में म राखज्यो खोटो॥ १६ आ पिण संका छै थारी मोने, वार-वार कहुं हिवै तोने। आ परतीत उपजावे गाढ़ी, करला सूंसादिक काढी।। जो तूं सरल छै नही अन्हाषी', तो तूं च्यार तीर्थ दे साखी। जो थारे रहणो छै गण मांय, तो इण विध परतीत उपजाय ।। इम सांभळ ने सुवनीत, विनै सहित बोले रूड़ी रीत। आप कहो तिण ने साखी देऊ, आप कहो तिको सूंस लेऊ॥ कदा कर्म जोगे परूं न्यारो, तो ओरां नै नहीं ले जाऊं लारो। कोइ आफे ही आवे मारी लार, तिणसूं भेळो नहीं करूं आहार॥ २० गण में रहूं निरदावे एकलो, किणसूं मिल नही बाधूं जिलो। किण नै रागी करै राखू म्हारो, एहवो पिण नहीं करूं बिगारो॥ साध साधवियां री बात, उतरती न करूं तिलमात। बले माहोमां कलह लागे, किण री नहीं कहूं किण ही आगे।। इण विध रहूं गण मझारो, किण रा ओगुण न बोलूं लिगारो। एहवा सूंस करावो आप, च्यार तीर्थ नै साखी थाप ।। ___ कदा कर्म जोग परूं न्यारो, तो हूं मुख में न घालू आहारो। ओ पिण सूंस करावो मोय, तिण रा साखी करो सहु कोय।। २४ च्यार तीर्थ नै दो थे जणाय, मो छूटक री न माने वाय। यांने ही दो सूंस कराय, पिण मोनै राखो गण मांय॥ २५ गुर ने उपनी जाणे अप्रतीत, तो इम उपजावे परतीत। ज्यां रे मुगत जावा री छै नीत, ते गुर ने आराधे इण रीत॥ २६ जे समता रस में रह्या झूल, ते तो मरणो इ कर दे कबूल। पिण गुरुकुलवासो नहीं मूके, विनादिक गुण नहीं चूके ।। २७ सुवनीत गुरां ने अराधे, ते आत्मा रा कारज साधे। विनौ कर गुर नै रीझावे, ते मुक्ति तणा सुख पावे ।। अथ इहां पोता री परतीत जमावण रो उपाय गुरां ने रीझावा रो उपाय स्वामी भीखणजी बतायो। तिण सूं विनैवान हुवे ते ए सीख धारी गुरां ने अराधे। तेह नो इहभव परभव में जस वधे। मर्यादा सुध पाळ्यां मुक्ति मिले। अवनीत अजोग री संगत न करे। टाळो कर अनेक फेर फितूर करे आप री जमावण वास्ते अनेक उपाय घुनराइ कुबध केलवै। तिण नै आछी तरै सूं ओळख ने संगत करे नहीं। काळा साप सरीषा किंपाक फळ १.मायावी। २५४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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