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________________ साख करने त्याग छै । इत्यादिक अनेक लिखत जोड़ में अवनीत ने निषेध्यो छै । अने विनीत ने सरायो छै। विनीत प्रतीत गुरां ने उपजावे ते रीत बताइ १ 'अपछंदा में घणां छै दोष, छांदो संध्या सूं पांमे मोष । उत्राध्येन चोथाधेन मझारो, कोइ बुधवंत करजो विचारो ॥ गुर ने शिष री ऊपजे अप्रतीत, विनादिकं में जाणे विपरीत । जो उ शिष हुवे सुवनीत, तो उपजावे गुर ने परतीत ॥ जिण - जिण बोलां री गुर रे संक, संका काढ़े नै करे निसंक । करला - करला सूंस खावे, गुर ने परतीत उपजावे ॥ सूंस कीधा इ परतीत नांणे, सूंसा ने पिण लोपतो जांणे । तो सूंस लिख देवे कोरे पाने, ते किण सूं न राखे हूं इण लिख्या प्रमाणे चालूं, आज्ञा लोप कदे नहीं हालूं । जो शिष हुवे सुवनीत, इम उपजावे छांने ॥ परतीत ॥ सूंस लिखत री नांणे प्रतीत, आगे गुर ने घणी - अप्रतीत । तो ही हाथ जोड़े सुवनीत, विनय सहित बोले रूड़ी रीत || म्हारी परतीत मूळ न राखी, तो हिवे च्यार तीर्थ देउ साखी। म्हारा सूंस कागद में लिखाय, च्यार तीर्थ ने देउ वचाय ॥ हूं चालूं इण लिख्या प्रमांणो, कदा चूक में पडियो जांणो । तो च्यार तीर्थ ने देजो जताय, ते मोने हेले निदे आंणे ठाय ॥ जोयां रे कनै न चालू सूधो, तो मोने कर देजो गण सूं जूदो । पण मो सूं किरपा करो स्वामीनाथ ! म्हारे मस्तक राखो हाथ ॥ हूं मरजादा नहीं चूकूं, आप रो सरणो नहीं मूकूं | आप रो छै मोने आधार, मोने उतारो भव पार ॥ जब गुर कहे तूं बोले सूधो, हिवै मूळ न दीसे ऊंधो। रखे हुवेला तू विसासघाती, बांवळिया रे बीज रो साथी ॥ तो उ सूळां लियाइज ऊगे । ज्यूं वधे ज्यूं सूळां लागे || विनो करै छै ताहि । सूं परिणाम उतारे ॥ नै ले जावेला लारे । घणो विषवाद ॥ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ बावळ बीज बोयां पाणी पूगे, बावळ बीज सुंहाळो थो आगे, हिवै १३ ज्यूं तूं रहे छै गण मांहि, घणो रखे साध-साधवियां नै फारै, गुर पछे आळ दे नीकळे बारे, ओरा पाछला ने परूपे असाध, करेला १२. १४ १. लय- तूं तो सुण हो राजा म्हांरी विनती तेरहवीं हाजरी : २५३
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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