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________________ दसवीं हाजरी पांच सुमति तीन गुप्ति पंच महाव्रत अखंड आराधणा। ईर्ष्या भाषा एषणा में सावचेत रहणो। आहार पाणी लेणो ते पक्की पूछा करीने लेणो। सूजतो आहार पिण आगला रो अभिप्राय देखने लेणो। पूजतां परठतां सावधान पणे रहणो। मन वचन काया गुप्ति में सावचेत रहणो। तीर्थंकर नी आज्ञा अखंड आराधणी। श्री भीखणजी स्वामी सूत्र सिद्धान्त देखने आचार श्रद्धा प्रकट कीधी-विरत धर्म, अविरत ते अधर्म। आज्ञा मांहे धर्म, आज्ञा बारे अधर्म। असंजती रो जीवणो बंछे ते राग, मरणो बंछे ते द्वेष, तिरणो बंछे ते वीतराग नो मार्ग छै। तथा विविध प्रकार नी मर्यादा बांधी। संवत् १८५० रे वरस भीखणजी स्वामी साधां रे मर्यादा बांधी-"किण ही साध आर्यों में दोष देखे तो ततकाळ धणी ने कहणो तथा गुरां ने कहिणो, पिण ओरां ने न कहिणो। घणा दिन आडा घालने दोष बतावे तो प्राछित रो धणी उहीज छै। तथा संवत् १८५२ वरस आर्यां रे मरजादा बांधी, तिण में एहवो कह्यो-किण ही साध आर्यों में दोष हुवे तो दोष रा धणी ने कहिणो, तथा गुरां ने कहिणो और किण ही आगे नहीं। रहिसे रहिसे और भुडी जांणे ज्यूं कहणो नहीं। किण ही आर्यां दोष जाणने सेव्यो हुवे ते पाना में लिखिया बिना विगै तरकारी खाणी नहीं। कदाच कारण पक्ष्यां न लिखे तो ओर आर्यों ने कहिणो। सायद करने पछे पिण वेगो लिखणो। पिण विना लिख्यां रहिणो नहीं, आय ने गुरां नैं मूहढ़ा सूं कहणो नहीं। माहोमां अजोग भाषा बोलणी नहीं। जिण रा परिणाम टोळा मांहे रहिण रा हुवे तो रहिजो। पिण टोळा बारे हुवां पछे टोळा रा साध साधव्यां रा अवगुण बोलण रा अनंता सिद्धां री साख करने त्याग छै। कोई साध साधव्यां रा ओगुण काढ़े तो सांभळण रा त्याग छै। इतरो कहणो-- 'स्वामीजी ने कहिजो, ए बावनारा लिखत में कह्यो। तथा पचासा रे वरस साधां रे लिखत कीधो, तिण में एहवो कह्यो-“किण ही साध साधव्यां रा ओगुण बोलने किण ही ने फारने मन भांगने खोटा सरधावा रा त्याग छै। किण ही सूं साधपणो पळतो दीसे नहीं, अथवा सभाव किण सू इ मिलतो दीसे नहीं, अथवा कषाइ धेटो जाणने कोइ न राखे अथवा खेत्र आछो न बतायां अथवा कपड़ादिक रे कारणे अथवा अजोग जाण ओर साधु गण सूं दूरो करे अथवा आपने गण सूं दूरो करतो जाणने इत्यादिक अनेक कारण उपने टोळा सूं न्यारो पड़े तो किण ही साध-साधवियां रा ओगुण बोलण रा हूंतों अणहूंतो खूचणो काढ़ण रा त्याग छै। तथा जिलो न बांधणो, संवत् १८४५ रा लिखत में कह्यो-टोळा माहे पिण साधां रा मन भांगने आपरे जिले करें ते तो महाभारीकर्मो जाणवो, विस्वासघाती जाणवो, इसड़ी दसवीं हाजरी : २३५
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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