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________________ छठी हाजरी पांच सुमति तीन गुप्त पंच महाव्रत अखण्ड आराधणा । ईर्या, भाषा, एषणा में सावचेत रहणो । आहार पाणी लेणो पड़े तो पक्की पूछा करी ने लेणो । सूझतो आहार पानी लेणी ते पक्की पूछा करी ने लेणो । आगला रो अभिप्राय देखने लेणो । पूजतां परठवता सावधान पणे रहणो । मन वचन काया गुप्त में सावचेत रहणो, तीर्थंकर नी आज्ञा अखण्ड आराधणी, श्री भीखणजी स्वामी सूत्र सिद्धान्त देखने आचार श्रद्धा प्रगट कीधी । बिरत में धर्म, अविरत में अधर्म, आज्ञा मांहे धर्म, आज्ञा बारे - अधर्म, असंजती रो जीवणो बंछै ते राग, मरणो बंछै ते द्वेष, तिरणो बंछै ते वीतराग देवनो मार्ग छै । तथा विविध प्रकार नी मर्यादा बांधी। संवत् १८५० रे वर्स भीखणजी स्वामी साधां रे मर्यादा बांधी, किण ही साधु आय में दोष देखे तो ततकाळ धणी कहिणो, अथवा गुरां ने कहिणो, पिण ओरां ने न कहिणो, घणा दिन आड़ा घालने दोष बतावे तो प्राछित रो धणी उ हीज छै । प्राछित रा धणी ने याद आवे तो प्राछित उण ने पण लेणो न लेवे तो उण मुसकळ छै । कोई सरधा आचार रो बोल नीकळे तो बड़ा सू चरणो पिण औरां सूं चरच औरां रे संका घालनी नहीं। बड़ा जाव देवे ते आपरे हिय वेसे तो मान लेणो, नहीं वेसे तो केवळिया ने भळावणो । पिण टोळा मां भेद पाड़णो । नहीं मांहोमांहि जिलो बांधणो नहीं । आपरो मन टोळा सूं उचक्यो अथवा साधपणों पळे नहीं तो किण ही ने साथ ले जावण रा अनन्ता सिद्धां रो साष करने पचषांण छै । किण रा परिणाम न्यारा होण रा हुवे जब ग्रहस्थ आगे पेला री परती करण रा त्याग छै । जिण रो मन रजामंद हुवे । चोखी तरह साधपणो पळतो जांणो तो टोळा मांहे रहणो । आप में अथवा पेळा में साधपणो जाणने रहिणो, ठागा सूरहिवारा अनंता सिद्धां री साष सूं पचषांण छै। कोई टोळा मा सूं टळने साधसाधवियां रा दोष बतावे अवरणवाद बोळे तिण री बात मांनणी न ही, तिण ने व्यवहार में तो झूठो बोलो जाणणो, साचो हुवे तो ज्ञानी जाणे पिण छद्मस्थ रा व्यवहार में तो झूठे जाणणो । एक दोष सूं बीजो दोष भेळो करे ते तो अन्याई छै, जिण, रा परिणाम मेला होसी ते साध आय्य रा छिद्र जोयने भेळा करसी, ते तो कर्मा जीवां रा काम छै, अने डाहो सरळ आत्मा रो धणी होसी ते तो इम कहसी - कोइ ग्रहस्थ साध - साधवियां रो सभाव प्रकत अथवा दोष कहि बतावे जिण यूं कहो - मोने यानें कहो, के तो धणी ने कहो, के स्वामीजी ने कहो, ज्यू यांने प्राछित देने सुध करे, नहीं केसो तो थे पिण दोषीला गुरां रा सेवणहार छो। जो स्वामीजी ने न कहिसो तो थांमे पिण बांक छै । थे म्हांने कह्या कांइ हुवे, यूं कहिने न्यारो हुवे पिण आप बेदा मांहे क्यानें पड़े । पेला रा दोष धारने भेळा करे ते तो तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था २१६
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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