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________________ १३ विना अविना रो ए विस्तार, कीधो खेरवा सैहर मझार। बतीसै वरस संमत अठारो, भादवा सुदि छठ सुकरवारो।। अथ इहां पिण अविनीत नै ओळखायो-टोळा बारे नीकळी, क्रोध रै वस साधां नै असाधु कहै अवगुण बोलै चोर ज्यूं बिगाड़ो करै तिण री बात बुधवंत न मांनै। तिण नै लोक आरै न करै जद पाछो माहै आवै, जो उ बलै सुध न चालै जद गुरु दूर करै तथा आचार्य रै छांदे चालणी नावै संकड़ाइ मै चालणी नावै जद आपही टोळा वारै नीकळी फेर अवगुण बोलै, इसड़ा अवनीत विवेक विकळ री बात न मानणी, एहवो कह्यो। अवनीत रो ठागो प्रगट कियो। तथा पैंताळीसा रे वर्स मर्यादा बांधी तिण में कह्यो-टोळा मांहि कदाच कर्म जोगे टोळा बारै पड़े तो टोळा रा साध साधवियां रा अंसमात्र अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै। यांरी अंसमात्र संका पडै आसता ऊतरै ज्यूं बोलण रा त्याग छै टोळा मासूं फाड़नै साथै ले जावण रा त्याग छै। ओगुण बोलण रा त्याग छै। माहोमा मन, फाटै ज्यूं बोलण रा त्याग छै। इम पैंताळीसा रा लिखत में कह्यो ते भणी सासण री गुणोत्कीर्तन रूप बात करणी। भागहीण हुवै सो उतरती करै तथा भागहीण सुणै तथा सुणी आचार्य नै कहे नही ते पिण भागहीण, तिण नै तीर्थकर नो चोर कहणो हरामखोर कहणो तीन धिकार देणी। आयरिए आराहेइ, समणेयावि तारिसो। गिहत्था वि णं पूयंति, जेण जाणंति तारिसं॥ आयरियं नाराहेई, समणेयावि तारिसो। गिहत्थावि णं गरहंति, जेण जाणंति तारिसं॥ इति 'दशवैकाळिक में कह्यो ते मर्यादा आज्ञा सुद्ध आराध्यां इहभव में परभव में सुख कल्याण हुवै। १. दसवेआळियं, ५/२/४५,४० पंचवीं हाजरी : २१५
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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