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________________ ५ ६ ७ ८ ९ बले उपधादिक नो जाचवो, बलि देवो लेवो और साधनै, इत्यादिक काम अनेक आगन्या विन न करै एक ॥ परिवार । उपवास बेलादिक गुरु तपस्या करै, करै रसादिक विना, बले और पासै करावै आप | ते पिण न करै आगन्या संलेखणा संथार ॥ करै व्यावच और साधां तणी, ते पिण गुरु आगन्या हुवा, एहवी जिन शासण री थाप ॥ अंशमात्र करणो रावणो, ते पिण आगन्या लै सुवनीत । सर्व कार्य में लेणी आगन्या, एहवी बांधी छै अरिहंत रीत ॥ तो सगळा नै गमतो होय | सुवनीत टोळा मांहे रह्या, ते और साधु साथै मेल्यां थकां तिण नै पाछो न ठेलै कोय ॥ ११ १० गुरु गुरुभाइ नै टोळा करतां लोक पिण गुण ग्राम शिष्य शिष्यणी मिलै और बले कंठ कळा देखी १२ किण ही साधां एहवा सुवनीत री १३ गमतो लागै तीर्थ एहवा सुनीत १४ केइ क्रोधी अहंकारी निरलजा, भेष पहरी करै कपटाय । इहलोक तणां अर्थी घणां, त्यां सू विनय कियो किम जाय ॥ १५. अवनीत में अवगुण घणां, ते तो जाक छोडै वनीत। विनय रा गुण सगळा आदरै, ते तो गया जमारो जीत ॥ अथ इहां सुवनीत रा लक्षण कह्या, तिण में कह्यो - आज्ञा विना अंशमात्र करे नहीं। बली कह्यो–गुरु आदि सर्व शासण रा गुण गावै । लोक गुण ग्राम करता देखी सुव सु-सुण नै हर साधुपणो पाळवा री आज्ञा आराधवा री नीत राखै । बलि कह्यो- क्रोधी अहंकारी र्ला भेष पहरी कपटाइ करै । इहलोक रा अर्थी, आछो खाणो पीणो वस्त्र पात्र खेत्र आप रै वस रहणो, इत्यादिक पोता रा स्वार्थ पूंगा राजी, गुरु ना गुण गावै । अने गुरु आछो खेत्र न भोळावै तथा आहार पाणी वस्त्रादिक मन गमता न देवै तथा जुदो न विचरावै बीजा छोटा बड़ां रै लारे मेलै १९६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था तणां, गुण बोलै रूड़ी रीत । थकां, सुण-सुण हरषै सुवनीत ॥ साधां नै, मिलै उपधादिक अनेक । और नी, वनीत तो हरषै विशेष ॥ रो न करै ईसको, सर्व साधां रै हुवै हितकार । वंशावळी, फेलै तीनूं लोक मझार ॥ नै, जिन सासण रो सिणगार । रै पारौं रह्या, सिखावै विनय आचार ॥ च्यार
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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