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खेधो करै इत्यादिक अवनीत रा लक्षण कह्या। ए प्रथम ढाळ री गाथा कही तथा वनीतअवनीत री चोपी री तीजी ढाळ में एहवो कह्यो२४ 'कोई भगता छै सुवनीत आत्मा, गुरु छांदै रो चाळणहार हो। जो हेत देखै तिण ऊपर गुरु तणों, तो अवनीत मुख दे बिगाड हो॥
श्री वीर कह्यो अविनीत नै अति बुरो ॥धुंपदं॥ २५ वनीत ऊपर घणो हेत हुवै गुरु तणो, तो अवनीत नै दुख हुवै साख्यात।
जब ओगुण सूझै अणहुंता गुरु तणा, बले बांछ वनीत री घात॥ २६ बलि अविनीत जाणै वनीत मूंआ थकां, पछै म्हारो इज होसी आघ।
एहवा परिणामां घात बांछै सुवनीतरी, तिण लीधो कुगति नो माग ।। २७ बलि ओषध भेषद आहार पाणी तणी, उ जाणी नै पाडै अंतराय।
दुख असाता बांछै सुवनीत री, अवनीत नै ओळखो इण न्याय॥ २८ गुरु बारा सूं आयां उठ ऊभो हुवै, पग पूंज नमें सुवनीत।
अवनीत नै इतरोइ करणो दोहिलो, कदा करै तोइ yडी रीत॥ २९ पग पूंज व्यावच करणी अवनीत नै, ते तो कठिन घणो छै काम।
ते काम पड़यां अवनीत टाळो दियै, तिण रे प्रबळ अविनय नै अभिमान। ३० गुरु भगतां ऊपर द्वेष अवनीत रे, बलै ईसको नै धैष अत्यन्त।
उणरा छिद्र जोवै छै उतारण आसता, तिण रा चरित्र जाणे मतिवंत॥ ३१ बले करै वनीत सूं मूढ बरोबरी, पिण विनय कियो मूळ न जाय। बले अवगुण न सूझे अवनीत नै आपरा, तिण सूं दिन-दिन दुखियो थाय॥
अथ इहां गुरु भक्तां गुरु छादै रो चालणहार तिण ऊपर गुरां रो हेत देखी दुख वैदे तिण नैं अवनीत कह्यो। बलि एहवो कह्यो-आहार पाणी ओषधादिक नी अंतराय पाडै, दुख असाता बांछै तिण नै अवनीत कह्यो। बलि गुरु वारै सूं आया सुवनीत उठ ऊभो हुवै पग पूंज नमें। अनै अवनीत नै इतरो करणो दोहिलो कदा करें तो भंडी रीत करें एहवो कह्यो। गुर भक्ता ऊपर धेष राखै बले खेधो ईसको करै। छळ छिद्र जोवै वनीत सूं बराबरी करै। पोता सूं विनय कियो जाय नहीं, पोता रा अव-गुण सूझै नही, तिण रा दुख माहै दिन जाय एहवो कह्यो। तथा विनीत अवनीत री चोपी री चोथी ढाळ में एहवो कह्यो
१. लय : पूज्यजी पधारो नगरी सेविया।
१९४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था