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ढाळ ६
'आतो भिक्षु बांधी भारी रे, मर्यादा सुखकारी। वर्ष गुणसवै संवत अठारी रे, महा सुदी सातम सारी ॥ध्रुपदं॥ आचारज रे नामे दीक्षा, देणी मुनि श्रमणी ने। दीक्षा दे ने आण सूंपणा, गणपति परम गणी ने।। शेषकाळ चउमासे रहिणो, गणपति आण प्रमाणे।
आज्ञा बिना न रहिणो क्यांही, और कार्य इम जांणे॥ ३ आचारज अपणी इच्छा सूं, पट आपे धर पेमो।
गुरु भाइ अथवा चेला नें, तसु आज्ञा पिण एमो।। एकण री आज्ञा में रहिणो, सर्व भणी धर प्रीतं ।
संत सत्यां रो शुध मग चाले, त्यां लग एहिज रीतं ।। ५ कर्म योग गण सूं निकळे, तसु साध श्रद्धणो नाही।
तिण ने वांदे पूजे ते पिण, नही जिन आज्ञा मांही ।। कर्मयोग गण सूं टळिया, हूंता अणता जाण। गण रा अवर्ण बोलण रा, जावजीव पचखांण।। गण में लिखे तथा जाचे, ते वस्त्र पात्रादि पिछाणो । ते पिण साथे ले जावण रा, छै तेहने पचखांणो ।। इण श्रद्धा रा क्षेत्रां विषे, पिण रहिवा रा पचखांणो।
इक बाई भाई हुवै त्यां पिण, रहिणो नहीं छै जाणो॥ _शेषकाळ चउमास उतरियां, तंतू जाचे ज्यांही।
आचारज ने आण सूंपणो, बांट वावरणो नाही॥ १० काम जरूर पड़यां थी, जोडो-जाडो बांटी लेणो।
महीं आचार्य दै ते लेणो, बुरो दियो नहीं कहिणो।। ११ इत्यादिक मर्यादावां, बांधी भारी गुणकारी।
साठे भाद्रव परभव पहुंता, सात पोहर संथारी॥ १२ चरम मर्यादा स्वाम ए बांधी, तेह तणो सुविचारो।
नाम चरम मर्याद महोत्सव, च्यार तीर्थ हितकारो॥ १३ उगणीशै षट् बीस बीदासर, महा सुद छठ निशि तायो।
चालीश त्राणू वर मुनि अज्जा, जयजश हर्ष सवायो॥ १. लय-ए तो जिन मारग रा नायक रे।
मर्यादा मोच्छब री ढाळां : ढा० ६ : १७५