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________________ १ २ ३ 8 ५ १ २ ३ ४ ५ टहुका सहाय' में रैहणौ । सहाय बिना रहै तो एक एक दिन रा १३ मंडल्या' । आचार्य सूं विनय सहित कर जोड़ी मधुर वचन नजीक आवी नैं अरज करणी । स्थानक बैठा अरज न करणी । जिता दिन जुदै सिंघाड़े विचरै त्यां सर्व पाछला साधू नैं कारणीक साधु नैं राख्यां ति रा चित नैं समाधि रहै तिम, तेतला दिन रैहणौ । करड़ा वचन रौ तथा खूंचणौ कतोहल ऊतरती बात रौ तथा अजयणादिक और ही बात रौ च्यार पांच साधु तथा सिरपंच मंडल्या विचारी देवै ते लैणा, मन बिगाड़णौ नहीं । पांती रौ काम, पांती रौ बोझ आदि रसता बंध्या तिण में माथाधूण' न करणी । इण मैं मन बिगाड़े तिण नैं अपछंदो अविनीत कैहणो, मर्यादा रो लोपणहार, कषाई, दुष्ट आत्मा रो धणी, 'शेख अबदुल मुफत रौ साथी कहणौ । (हिन्दी अनुवाद) साझ' में रहना चाहिए। अगर साझ के बिना रहे तो एक-एक दिन का प्रायश्चित्त १३ मंडलिया । आचार्य से निवेदन करे तो निकट आकर विनय पूर्वक कर बद्ध होकर मधुर वचनों से करे | अपने स्थान पर बैठा-बैठा नहीं। जितने दिन बहिर्विहार में अग्रगण्य या अनुगामी रूप में रहे, उतने दिन उनको रुग्ण साधु के पास रखा जाए तो उसके चित्त में समाधि रहे, वैसे रहा जाए। कटु वाक्य, हास्यमजाक, अवर्णवाद या अयतना आदि किसी प्रसंग का प्रायश्चित्त चार पांच साधु (पंच) तथा सरपंच चिन्तन पूर्वक दे, उसे सहर्ष स्वीकार करें। विभाग कार्य, विभाग का वजन लेने आदि के लिए जो धाराएं बनी हुइ हैं, उनके पालन में आनाकानी न करें ! इसमें अनमना बनने वाले को स्वच्छन्द, अविनीत, मर्यादा भंजक, कषायी, दुरात्मा तथा शेख अब्दुल का साथी कहा जाए। १. एक व्यक्ति की प्रमुखता में स्थापित मुनियों का मंडल । २. भोजन के समय बिछाया जाने वाळा वस्त्र, उसे धोना । ३. बार-बार गलती बतलाना । ४. जयाचार्य द्वारा नियुक्त युवाचार्य श्री मघराज जी । ५. मस्तक हिलाना, आनाकानी करना । ६. देखें- परिशिष्ट । टहुका १६१
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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