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________________ ढाळ १० . m 80 o w a 'सुगण जन सांभळो रे ॥ध्रुपदं। आचारज गुण आगला रे, धर्मघोष अणगार। वांण अपूरव वागरे रे, सांभळतां सुखकार। पृथी अप तेउ वाय में, रुळियो असंख्यातो काळ। असंख्याता काळचक्र लगै, पायो दुःख असराळ।। प्रदेश अंगुल क्षेत्र में, कह्या असंख्यात जगनाथ। समै समै एकीको काढ़तां, थायै काळचक्र असंख्यात॥ असंख्याता लोकाकाश नां, प्रदेश जेता होय। एता काळचक्र दुःख सहया, च्यार थावर में जोय॥ वनस्पति . में जीवड़ो, रह्यो अनंतो काळ। काळचक्र अनंता लगै, जनम मरण दुःख झाळ।। अनंता लोक आकास ना, प्रदेश जेता होय। एता काळचक्र दुःख सह्या, वनस्पती में जोय॥ पैंसठ हजार नैं पांचसौ, छत्तीस ऊपर न्हाळ। एक मुहूर्त में भव कियां, निगोद दुःख विकराळ।। काळ अनंत निगोद में, जनम मरण महाभींच। नरक थी दुःख अनंत गुणो, निगोद केरो नीच॥ नरक सातमी रो आउखो, तेतीस सागर प्रमाण। मार अनंती भोगवै, सुख रो संचार म जांण ।। तेतीस सागर ना समा हुवै, सातमी में गयो इती वार। तिण सूं अनंतगुणो दुःखनिगोद में, काळ अनंत मझार।। तसकाय में जीवड़ो, रह्यो उत्कृष्ट पिछाण। दोय हजार सागर लगै, कांयक जाझो जांण।। __बेंद्री तेइद्री चौरिंद्री, रह्यो वरस संख्याता हजार। विविधपणै दुःख भोगव्यां, अब तो आंख उधाड़। सातूं नरक में ऊपनो, इक इक नरकावासा माय। अनंत-अनंत वार दुःख सहया, सुणियांइ थड़हड़ थाय। १. लय-सीता कुंवरी बाधती रे....... उपदेशरी चौपी: ढा० १० : १४७
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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