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________________ १ २ ३ ४ ५ ढाळ ९ निरास ॥ जीवा सुगरु आण सिर धारियै रे || ध्रुपदं ॥ जीवा ! काळ अनंते दोहिलो रे, जीवा ! लाधो नर भवसार रे । जीवा ! धर्म सामग्री पाय नै रे, हिवै एहल जन्म मत हार रे || जीव ! सुर सुरपति ऋद्धि ळही, भोगव्या सुख विलास । जीवा ! तृप्त कदे हुवो नहीं, चाल्यो परभव होय जीवा ! तन धन जोवन कारमो, जीवा ! जातां न लागै वार । जीवा ! काम भोग विष सारखा, यांरी अंतरंग चाहि निवार || जीवा ! जन्म मरण जरा पूरियो, दुःख भोगव्या विविध प्रकार | ए डाव आयो तिरवा तणो, तूं वहिलो होय हुसीयार ॥ जीवा ! संजम तप दोय मंत्रवी, जीवा ! ले तूंबो लावो लार । प्रेम प्रतीत आराधियां, ए तो मुक्त पोहचावणहार ॥ १. लय-नदीय किनारे संखड़ो.. १४६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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