________________
ढाळ १
'खिम्यावंत जोय भगवंत रो जी ज्ञान॥धुपदं।
देवै सतगुरु देशना रे, ए संसार असार। रोग सोग दुःख अति घणो रे, देखो आंख उघाड़।
खिम्यावंत जोय भगवंत रो जी ज्ञान।। आज काळ धर्म आदरूं, पक्ष मास चउमास। इम आशा बांधै आगली, फस्यो विषय मोह पास ।। अञ्जळि ना जळ नी परे, आउ घटतो जाय । विघ्न घणा मोहरत मझै, तूं सोच देख मन मांय॥ सज्जन त्रिय सुत कामणी, खिण विरहो न खमाय । इक दिन पाप उदय हुवा, सो काळ गयो गटकाय।। तीन अरि लारे लग्या, रोग जरा मरण जाण। इण न्हासण रे अवसरे, क्यूं सूतो मूढ़ अयाण।। बळद जेम चंद सूर छै, दिवस रात्रि घड़माळ। जळ आयु ओछो करै, ए काळ रेंट विकराळ। काळ सर्प खाधां थका, नहिं चतुराई जाण। नहीं कळा नहिं औषधी, तिण सूं धर राखै प्राण ।। पृथ्वी रूपी कमल छै, मेरु केशर दिशि पान। रस आउखा रूपीयो, काळ भ्रमर ले ताण।। छाया मिष छळ ताकतो, काळ महा विकराळ। पास न मूकै सर्वथा, पहिला आपो संभाळ ।। जीव रुळ्यो संसार में, विविधपणै गति स्थान ।
आदि अंत दीसै नहीं, नरक निगोद पिछान।। बंधव सुत जन मित्रवी, मरण न राखै कोय। दाग देई पाछा बलै, निज स्वार्थ रह्या रोय।। सुत बंधव विचरे सहू, पलटै संच्यो धन। इक धर्म कदे नहीं पलटै रे, निश्चय राख तूं मन॥
१२
१. लय-खिम्यावंत जोय भगवंत रो जी ज्ञान।
१३६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था