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ढाळ २४
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'सयाणा ! स्वाम गण सुख कारियो जी ॥ध्रुपदं॥ शासण वीर तणों सुविसालं, होजी ओ तो धारयो भिक्षु भारीमालं॥ तास प्रसाद लह्यो सुख चारू, ओ तो नृपशशि जयजश वारू।। भरत में भाण भिक्षु भळकंत, ओ तो धारियो प्रभुजी रो पन्थ॥ गर्भ जन्म जरा मरण नां दुख भारी, स्वाम गण थी हुवै निस्तारी॥ मनुष्य लोक थी अनंत गुणों नरक मायो, स्वाम गण थी ते दुख मुकायो। खेत्र-वेदन सुर कृत अनंत, स्वाम गण थी ते दुख नों है अन्त॥ निगोद नां दुख नरक थी अधिकायो, स्वाम गण थी ते पिण मिट जायो। दुख समुद्र संसार है भारी, स्वाम गण थी ते पिण लहै पारी ।। काळ अनंत भ्रमण कियो आगै, पायो तीर्थ स्वाम गण सागै।
सम्यक्त्व देस विरत ने चरित्तं, स्वाम गण वर सरण पवित्तं ।। ११ स्वाम प्रवर गण सरणे आयो, ए तो सर्व दुख क्षय पायो।। १२ पद अहमिन्द्र सव्वठ्ठ-सिद्ध' भारी, स्वाम गण थी लहै सुख सारी।। १३ चक्री बलदेवादिक नों पद भारी, स्वाम गण थी होवै अधिकारी। १४ पद तीर्थंकर गोत बन्धावै, स्वाम गण थी प्रवर सुख पावै ।।
आत्मिक-सुख पामै भारी, स्वाम गण सरण थी उदारी।। सासण नाथ तणों तीर्थ तीखो, म्है तो पायो स्वाम गण नीको।।
पारस परम स्वाम गण साचो, पायो जबर भाग्य थी जाचो।। १८ रत्न चिन्तामणि गण कर आयो, आतो चिन्ता सर्व मिट जायो।। १९ सरण स्वाम गण रै कोइ आवै, त्यांरा विघन सर्व मिट जावै।।
१. लय : आज अम्बाजी के नोपत ।
२. सर्वार्थ सिद्ध ।
शिक्षा री चोपी : ढा० २४ : ११७