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ढाळ १९
'सुमति सदा दिल में धरो ॥धुपदं ।। आचारज ने आगले, शिष्य शिष्यणी सुखदाय सलूणा! विनयवंत गण बालहा, सासण तिळक सोभाय सलूणा ! आण अराधै सुगुरु नी, कार्य करै धर प्यार। निपुण अनै स्थूल बुद्धि करी जाणै, इंगित आकार। कठण वचन गुरु सीखवै, समभावै रहे सूर। लाभ कारण ए मुझ भणी, न फेरै मुख नों नूर ।। गे'रा सायर सारिखा, सुरगिरि जेम अडोल ।, सासण स्तंभ सुहामणां, त्यांरा च्यार तीरथ में तोल ॥ परिषद मांहि निषेधियां, तो पिण पूरण प्रीत। कलुष भाव आणै नहीं, संत सती सुवनीत ।। एहवा शिष्य सुवनीत रो, सर्वकार्य में सार । गणपति नैं आधार दै, धरा सहे जिम भार || काच भाजन अवनीतड़ो, कहो चोटां खमै केम। सहै चोटां तो वनीत ही, के हीरा के हेम ।। अवनीत गोळौ मैण नों, तप्त गळे तत्काळ। सुवनीत गोळो गार नों, ज्यूं धमै ज्यूं लाल॥ अवनीत वृक्ष एरंडियो, अस्थिर ते करै कोप। सुवनीत कल्पतरू समौ, विनय नो वगतर टोप । ऊंडी तास आलोचना, गुण कर गहर गंभीर। निर्मळ भावै बरततो, जिम गंगा नों नीर ।। उगणीसै पणबीस में, तेरस धुर वैसाख । सुकल', सुवनीत लडावियो, जयजश शिव अभिलाख ॥
२.शुक्ल पक्ष ।
१.लय-तारा हो प्रत्यक्ष मोहनी। ११० तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था