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हुवै जिहां लग ताम ।
गुणधाम हीर |
आराधक पद पाम विनयवंत सि सासण तिलक
पयोधी
विनय करी नें
कांइ, गणपति जी कांइ, हरख बंधा कांइ, पिण न करै दिलगीर ॥ कांइ, तसु फळ इहभव एह । कांइ, वेगी मुगत वरेह ॥ एहवा फुन, गणपति इसा सुहामणां कांइ, निमळ सेवियां कांइ, वारू विध-विध सुविनीत सूं गुरु, पाळ त्रिहुं योगे रीझाविया, कांइ सतगुरु एहवा सिष सुवनीत नैं कांइ, पंडित मरण कार्य मनगमता करी कांइ, गणपति एहवा सिष सुविनीत नैं कांइ, पद दिये आराधक विनयवंत सिष नै बली कांइ, गणपति नी वर जोड़ | अविचल तीरथ च्यार में कांइ, एहवा आचारज थकी, सिष राखै
एहवा सिष
पूरण
प्रीत |
नें सुखदाय ।
नें
सासण सिरमणि मोड़ ||
हरष
विशेष ।
संपति
सुतंत ।
दीपंत ॥,
थाय ।
उचरंग दिन-दिन अति घणो कांइ, परम विनय नी समकित जेहनी निरमळी कांइ, प्रवर महाव्रत एहवा सिष गणपति तणै कांइ, दिन-दिन २३ आज्ञा अमल आराधनैं कांइ, तीरथ च्यार एहवा सिष गणपति तणीं कांइ, जोड़ी जग अन्यमति स्वमती पेख नै कांइ, ते पिण इचरज एहवा सिष गणपति तणीं कांइ, दिन-दिन दिन-दिन सोभा अति घणीं कांइ, हियै हरष अति हेव । एहवा सिष गणपति तणीं कांइ, सारे सुर नर सेव ॥ सेवा सारे सुर घणां कांइ, च्यार जाति ना एहवा सिष गणपति तणां कांइ, प्रणमें प्रणमें पाय अपछर एहवा सिष गणपति
सोभ सवाय ॥
अपछर घणां कांइ, फुन अन्य रो भणी कांइ, देख-देख हरषंत ॥
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आराधना
अंतसीम छैह न देवै तेनै छैह न देवै तेहनें
सदा प्रसन्न राखै तसु विनय करी रीझावियां
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काई,
१. किनारा ।
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२. अप्सरा ।
तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
गंभीर ।
क्षीर ॥
रीत ।
सहाय ॥ संतोष । पोष ॥
रेख ॥
पंच ।
संच ॥
चाय ।
पाय ||
सोहंत ।