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ढाळ ७
सतियां !
सतियां !
सतियां ! वर मर्याद सतियां ! हेतु दृष्टांत सतियां ! इम हिज सतियां ! गुरु भाई
'सतियां । सुगुरु सीख दिल धारिये रे ॥धुपदं ॥ सतियां ! स्वाम मर्यादा आराधियैरे, थेतो मेटो मान मरोड़ रे । सतियां ! वैसत बोलत गमन में रे, राखो जुगत विनय विध जोड़ रे ॥ सतियां ! चउमासौ उतरियां छतां, राखे गुरु दरसन रो कोड । सतियां ! शीघ्र आय सुगुरु पद प्रणमिये, जाणों सुविनीतां री जोड़ ॥ सतियां ! स्वाम मर्यादा सिर धरो, थे तो छळ पंरपच निवार । इण भव कुरब बधै घणों, थांरे परभव जय जयकार ॥ वारु वखांण सुवांचता, तिण में सासण अधिक दीपाय । दिढावियै, थांरी जग मांहि कीरत थाय ॥ वखाण में थे तो दाखो मलाय - मलाय २ । सासण दिढावता, इण में लाज सरम मत ल्याय ॥ टोळा तणां थे तो गुण गावो रुडी रीत । हरस हिवडै धरो, आतो सुविनीतां री नीत ॥ कदाग्रह मत करो, वले मत करो वाद विवाद | धर्म दिल में धरो, थांरे भव भव हुवै समाध ॥ सतियां ! सुगुरु रिझावो विनय सूं थे तो बोलो विनय सूं बोल । सतियां ! चित अनुकेडै चालता, अमोल ॥ सतियां ! सुगुरु रिझायां संपदा, थांरी रहिस्ये थिर पद थाप । सतियां ! वार वार कहूं थां भणीं, पछै पामो नही पिछाताप ॥ सतियां ! मुख आगै थारे आरज्यां, त्यांरो बंछो सुख हरवार । सतियां! बंछो टोळो' नै सुख तुम तणो, तो थे चालो चित अनुसार ॥ सुवि सूं पीतडी, पाळो सतगुर आण अखंड । सतियां ! अंग चेष्टा ओळखो, थांरो सुजस बधे महिमंड ॥ सतियां ! उगणीसै चवदै फागुण सुदि नवमी सोमवार । सतियां ! वारू सीख दीधी सतियां भणीं जोडी जयजश गणपति सार ॥ सतियां ! संत चोमाळी सोभता, ए तो समणी एक सौ साठ । सतियां ! सहर बीदासर
सतियां ! गुण सतियां ! दंभ सतियां !
क्षमा
थांरो बाधै तोल
समै,
रंगरळी, गणि संपति नित प्रति थाट |
१. लय-हंसा नदीय किनारे रूखड़ो रे ।
२. सझा सझा कर ।
ने
३. पश्चात्ताप ।
४. अग्रगण्यत्व |
शिक्षा री चोपी : ढा० ७ : ८७