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ते पिण अंजन पूडी आदि दे, दूजे दिन अवधारो। मूळ धणी री आण लियां विण, बहिरे नहिं लिगारो॥ मूळ धणी कहै सदा आण मुज, तो पिण ते नहीं गिणणी। मूळ धणी री नित-नित आज्ञा, लेइ वस्तु वावरणी॥ आचारज नी आण लियां विण, विचरै नै विचरावै। सैंखे काळ चउमासे वसतां, ते पिण झींका' खावै॥ ए मर्यादा लोपैं तेहथी, चारित्र रत्न रूळावै । अल्पकाळ नां सुख ने अर्थे, अनंत सुखां ने गमावै॥ सल्य सहित उत्कृष्टे भांगे, नरक तिर्यच में जावै। काळ अनंतो भ्रमण करै ते, बोधि दुर्लभ अति थावै।। संवत उगणीसै तेरे रवि दसमी, सुदी बैसाख वसावै। २आंणदपुर में सीख समापी, जयजस गण सुख चावै।। सुध मर्यादा पाळो संतां, गुरु बार-बार समझावै॥
१.दुःखी होकर पश्चात्ताप करना। २. जैतारण (राज०) के पास 'कालू' नामक गांव जिसे
आनंदपुर भी कहा जाता है।
८६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था