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प्रभु का जाप करते भूल हो जाने के भय से जिन्हें अचेतन जपमाला का आश्रय लेना पड़ता है, चारित्र के परिणाम से पतित हो जाने के भय से जिन्हें रजोहरण, मुखपट्टिका आदि का आश्रय लेना पड़ता है। सर्दी, गर्मी और वर्षा के भय से जिन्हें अचेतन वस्त्र तथा मकान आदि का सहारा लेना पड़ता है तथा हिंसक-पशु-पक्षी अथवा डाकु आदि के भय से जिन्हें शख इत्यादि की शरण खोजनी पड़ती है, उन्हें तब तक प्रभुगुण की स्मृति के लिए अचेतन मूर्ति का आलम्बन लिये बिना छुटकारा नहीं।
दूसरे सभी अचेतन आलम्बनों को स्वीकार करते हुए भी, अचेतन के नाम पर केवल परमात्मा की मूर्ति के आलम्बन को मानने से इन्कार करते हैं; उनके लिए तो परमात्मा के ध्यान की कीमत, सांसारिक वस्तु जितनी भी नहीं, ऐसा ही कहा जा सकता है।
पुस्तकादिः के आलम्बन बिना ज्ञानाभ्यास में चूक जाने वाले लोग मूर्ति आदि के आलम्बन के अभाव में परमात्म-ध्यान से नहीं चूकेंगे, ऐसा कैसे मान लिया जाय? परमात्मध्यान से हटाने वाली प्रतिपक्षी वस्तुओं के संसर्ग से जो मुक्त नहीं, वे मूर्ति के आलम्बन विना परमात्मा के ध्यान से चूके बिना रह ही नहीं सकते, पर परमात्मा के ध्यान से जीव के चूक जाने पर उसका कितना नुकसान होता है, यह सर्व सामान्य जगत् के ख्याल में नहीं होता। इसीलिए परमात्म-मूर्ति के आलम्बन के लिए कोई कुतर्क करे तो तुरन्त मन चल. बिचल बन जाता है।
किन्तु शास्त्र कहते हैं कि संसार के अन्य कार्य भूल जाने पर जीव को इतना नुकसान उठाना नहीं पड़ता जितना परमात्मध्यान से चूक जाने पर। ऐसे अनन्य आलम्बन का इस जगत् में अभाव हो जाय तो जीव आर्त्त-रौद्र ध्यान में चढ़कर अनन्त संसार को बढ़ाने वाला बनता
कोई भी व्यक्ति यदि अपने जीवन भर की कमाई को बिना ताले की तिजोरी में रखे तो कभी-न-कभी चोर उसे लूटे बिना नहीं रहेंगे। वैसे ही आत्मारूपी तिजोरी में एकत्र शुभध्यान रूपी अमूल्य धन को प्रतिमा का आलम्बन रूपी ताला लगाकर सुरक्षित न बनाया जाय तो प्रमाद रूपी चोरों द्वारा उसका नाश हुए बिना नहीं रहता।
... इस प्रकार शुभध्यान रूपी धन का नाश होने पर आत्मा को अनन्त संसार-सागर में भटकना ही पड़ता है। इसलिए जिनप्रतिमा का आलम्बन प्रमादी जीवों के लिए पानी पहले पुल बाँधने के समान अत्यन्त हितकारक है अथवा जिस प्रकार बिना बाड़ के खेत की किसान कितनी ही रखवाली क्यों न करें, पशु-पक्षी उसमें प्रवेश कर अनाज का नाश किरे बिना नहीं रहते, उसी प्रकार जिन-प्रतिमा के आलम्बन रूपी बाड़ बिना, दुर्ध्यान रूपी पशुः पक्षी शुभध्यान रुपी पके हुए धान का नाश किये बिना नहीं रहते।