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________________ अनुपस्थिति में उतनी रकम का काम एक चैक अथवा ड्राफ्ट से निकाला जा सकता है, वैसे ही श्री जिनेश्वरदेव की अनुपस्थिति में उनकी मूर्ति द्वारा भी साक्षात् भगवान को पूजने का फल अवश्य प्राप्त किया जा सकता है। 3. द्रव्य निक्षेप जो वस्तु भूतकाल में अथवा भविष्यत् काल में किसी कार्य के कारण रूप में निश्चित हो, उस कारणभूत वस्तु में कार्य का आरोपण करना, द्रव्य निक्षेप है। जैसे मृत साधु में तथा किसी साधु होने से पूर्व, साधु होने वाले को द्रव्य साधु मानकर उसकी दीक्षा का महोत्सव बड़ी धुमधाम से मनाया जाता है तथा साधु के मृत शरीर की दाह-क्रिया के समय उसे पालकी में बिठाकर, पैसे उछालते हुए बड़े ठाट-बाट से ले जाया जाता है और लोग भी इनके दर्शन के लिये दौड़-दौड़ कर आते है। श्री तीर्थंकरदेवों के जन्म तथा निर्वाण के समय वन्दन, नमस्कार करने का पाठ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति आदि शास्त्रों में है तो वह नमस्कार श्री तीर्थंकरदेव के द्रव्य निक्षेप को हुआ गिना जाता है न कि भावनिक्षेप को, क्योंकि जब तक केवलज्ञान नहीं हो. तब तक भावनिक्षेप नहीं कहलाता। भगवान् श्री ऋषभदेव स्वामी के जन्म समय शक्रेन्द्र के नमस्कार करने का उल्लेख श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में बताया हुआ है तथा उसी सूत्र में कहा है कि शक्रेन्द्र श्री हरीणेगमेषी देव के द्वारा अपने हित एवं सुख के लिए श्री तीर्थंकरदेव का जन्ममहोत्सव करने हेतु वहाँ जाने का अपना अभिप्राय देवताओं को बताया था। यह सुनकर मन में प्रसन्न होकर कई देवता वन्दन करने, कई पूजा करने, कई सत्कार करने, कई सम्मान करने, कई कौतुक देखने, कई जिनेश्वरदेव के प्रति भक्तिराग निमित्त, कई शक्रेन्द्र के वचनपालन के लिए, कई मित्रों की प्रेरणा से, कई देवियों के कहने से, कई अपना आचार समझकर (जैसे सम्यग्दृष्टि देवों को श्री जिनेश्वरदेव के जन्म-महोत्सव में अवश्य भाग लेना चाहिए) इत्यादि कारणों को अपने चित्त में स्थापन कर बहुत से देवीदेवता शक्रेन्द्र के पास आये। यदि द्रव्यनिक्षेप अपूजनीय अथवा निरर्थक होता तो सत्र में सुख के लिए तथा भक्ति के निमित्त आदि शब्द वन्दना के अधिकार में कदापि नहीं आते। ऐसे ही श्री ऋषभदेव स्वामी के निर्वाण के समय भी शक्रेन्द्र का आसन कम्पायमान होने पर अवधिज्ञान से भगवान का निर्वाण समय जानकर शक्रेन्द्र ने भगवान को वन्दन नमस्कार किया तथा सर्व सामग्री सहित श्री अष्टापद तीर्थ पर, जहाँ भगवान का शरीर था, आकर उदासीनतापूर्वक अश्रुपूर्ण नेत्रों से श्री तीर्थंकरदेव के शरीर की तीन प्रदक्षिणा दी। मृतक के योग्य सारी विधि की, इत्यादि शास्त्रप्रमाण भी द्रव्यनिक्षेप की वन्दनीयता को सिद्ध करते हैं। -65
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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