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________________ नाम सत्य है। 5. रूप सत्य - व्रत का आचरण न करता हो और का... ग मात्र से व्रती कहलाए, यह रूप सत्य है। 6. प्रतीत्य सत्य - अनामिका अंगुली कनिष्ठा के सम्बन्ध से दीर्घ और मध्यमा के सम्बन्ध से लघु कहलाती है, यह प्रतीत्य सत्य है। 7. व्यवहार सत्य - पर्वत पर घास आदि जलने पर भी यह कहना कि 'पर्वत जलता है', पानी जमने पर यह कहना कि 'घड़ा जमता है' तथा उदर होते हुए भी यह कहना कि अनुदरा कन्या - ये सब व्यवहार सत्य है। 8. भाव सत्य - बगुला सफेद और भ्रमर श्याम कहा जाता है। वास्तव में तो उन दोनों में पाँचों वर्ण हैं, फिर भी वर्ण की उत्कटता के कारण बगुले को सफेद व भ्रमर को श्याम कहना, यह भाव सत्य है। 9. योगसत्य - दंड के योग से दंडी, छत्र के योग से छत्री आदि कथन, योग सत्य 10. उपमा सत्य - समुद्र के समान तालाब आदि का कथन, उपमा सत्य है। 2. स्थापना निक्षेप जिस वस्तु का नाम मात्र सुनकर उसका बोध और भक्ति होना सम्भव है, तो वस्तु की आकृति अथवा जिसमें नाम के उपरान्त आकार है उससे अधिक बोध और भक्ति कैसे नहीं होगी? और उसे करने के लिए कौन इच्छा नहीं करेगा? नाम निक्षेप जिस प्रकार शास्त्र सिद्ध है, उसी प्रकार स्थापना निक्षेप भी अनेक शास्त्रों से सिद्ध है। श्री अनुयोगद्वार सूत्र में दस प्रकार से स्थापना का स्थापन करने को कहा गया है।। काष्ट में, 2 चित्र में, 3 पुस्तक में, 4 लेपकर्म में, 5 गुंथन में, 6 वेष्टन क्रिया में, 7 धातु का रस डालने में, 8 अनेक मणियों के संघात में, 9 शुभाकार पाषाण में और 10 छोटे शंख में। इन दस प्रकारों में से किसी भी प्रकार में क्रिया तथा क्रियावान् पम्प का अभेद मानकर, हाथ जोड़े हुए तथा ध्यान लगाये हुए आवश्यकक्रिया महिन माध की आकृति अथवा आकृतिरहित स्थापना करना अथवा आवश्यक सूत्र का पाठ लिना यह स्थापना आवश्यक कहलाता है। ____ हाथ जोड़कर तथा ध्यान लगाकर क्रिया करने वाले का रूप यदि सद्भाव स्थापना है तो पद्मासनयुक्त, ध्यानारूढ़, मौनाकृति, श्री जिनमुद्रासूचक प्रतिमा स्थापनाजिन कैसे नहीं 'कहलाएगी? यदि प्रतिमा स्थापनाजिन नहीं, तो पूर्वोक्तस्वरूप आवश्यक भी स्थापना - 59F
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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