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________________ देवलोक में उत्पन्न हुए हैं; अतः उनके द्वारा कृत कार्य अत्यन्त माननीय हैं, ऐसा प्रतिपादन किया हुआ है। श्रावकों के लिए भी प्रतिमा की पूजनीयता के प्रमाण : बत्तीस आगमों में जैसे देवताओं द्वारा श्री जिनप्रतिमा की पूजा करने के उल्लेख हैं वैसे इन्हीं बत्तीस आगमों में मनुष्यों द्वार की हुई प्रतिमापूजन के भी अनेक उल्लेख मिलते हैं, जिनमें से कई निम्नानुसार हैं - 1. श्री उदयाई सूत्र में बताया गया है कि अंबड़ परिव्राजक और उसके ७०० शिष्यों ने श्री वीतराग को नमन करने की तथा उनकी प्रतिमा को छोड़कर अन्य किसी को नमन नहीं करने की प्रतिज्ञा की थी। 2. श्री उपासक दशांग सूत्र में बताया गया है कि आनन्दश्रावक ने अन्यतीर्थी अथवा अन्य देवी देवता तथा उनकी प्रतिमाओं को वन्दन-नमस्कार आदि नहीं करने की प्रतिज्ञा की थी। 3. श्री भगवती सूत्र में असुरकुमारदेव सौधर्मदेवलोक तक जाते हैं। उस समय श्री अरिहन्त, उनके चैत्य तथा अणगार मुनि, इस प्रकार तीनों का शरण स्वीकार करते हैं, ऐसा वर्णन किया हुआ है। 4. श्री समयायांग सूत्र में आनन्दादि दस श्रावकों के चैत्य आदि का वर्णन किया हुआ है। श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र में श्री जिनप्रतिमा की वैयावच्च आदि करने की आज्ञा गई है। (यहाँ प्रतिमा के वैयावच्च से तात्पर्य है इसके अवर्णवाद, उपेक्षा, विराधना आदि को टालना।) 5. श्री कल्पसूत्र में श्री सिद्धार्थ राजा के अनेक याग अर्थात् श्री जिनप्रतिमा की पूजा करने के उल्लेख हैं। (श्री सिद्धार्थ राजा परम सम्यग्दृष्टि श्रावक थे। पशुहिंसा का यज्ञ उनके लिए संभव नहीं है। श्री भगवती आदि सिद्धान्तों में जहाँ राजा श्रेणिक और महाबलकुमार आदि के अधिकार आते हैं वहाँ "हाथा कथ बलिकम्मा" ऐसे जो उल्लेख किये हुए हैं इस बलिकर्म का अर्थ भी जिनपूजा ही समझना है।) ___6.श्री ज्ञातासूत्र में द्रौपदी की पूजा का विस्तृत अधिकार है। (द्रौपदी परम सम्यग्दृष्टि श्राविका थी। शासन-प्रभावना सम्यक्त्व के आठ आचारों में से एक है। श्री जिनप्रतिमा की महोत्सवपूर्वक पूजा भी शासन-प्रभावना का तथा शासन-उन्नति का एक परम अंग है, ऐसा - 50
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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