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प्राप्ति आदि श्री जिनेश्वरदेव की पूजा और भक्ति आदि से अवश्य प्राप्त होते हैं। श्री जिनपूजा में दानादि धर्मों की आराधना
श्री जिनेश्वरदेव की पूजा के समय पुण्यबन्ध रूप एवं कर्मक्षय रूप दोनों प्रकार के धर्मों की एक साथ आराधना होती है।
श्री जिनपूजा के समय अक्षतादि चढ़ाना दान धर्म है।
श्री जिनपूजा के समय विषय-विकार का त्याग करना शील धर्म है। श्री जिनपूजा के समय अशन-पानादि का त्याग करना तप धर्म है। पूजा 'के समय श्री जिनेश्वरदेव के गुणगान आदि करना भाव धर्म है।
श्री जिनपूजा से होने वाला कर्मक्षय
इसी प्रकार पूजन के समय - चैत्यवन्दनादि द्वारा गुणस्तुति आदि करने से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है।
प्रभुमूर्ति के दर्शनादि करने से दर्शनावरणीय कर्म का नाश होता है।
यतना और जीवदया की शुभ भावना से अशाता वेदनीय कर्म का क्षय होता है। श्री अरिहन्त परमात्मा तथा श्री सिद्ध परमात्मा के गुणों के स्मरण से क्रमानुसार दर्शनमोहनीय तथा चारित्रमोहनीय कर्म का क्षय होता है।
प्रभुपूजन के शुभ अध्यवसाय की तीव्रता से आयुष्य कर्म का क्षय होता है। श्री जिनेश्वरदेव के नामादि लेने से नामकर्म का क्षय होता है।
श्री जिनेश्वरदेव का वन्दन-पूजन आदि करने से नीच गोत्र कर्म का क्षय होता है तथा श्री जिनेश्वरदेव की पूजा में शक्ति, समय तथा अन्य द्रव्य का सदुपयोग करने से वीर्यान्तरायादि कर्म का क्षय होता है |
इस प्रकार जिनपूजा में पुण्यबंध, देश से या सर्व से कर्म-निर्जरा तथा परम्परा से शाश्वत सुखस्वरूप मोक्ष की प्राप्ति तक के सभी कार्य एक साथ सिद्ध होते हैं। श्री जिनपूजा जैसा आसान से आसान, बालक से लेकर वृद्ध तक सभी जिसे कर सकते हैं, ऐसा अनुपम लाभकारी अन्य कोई कार्य लोक-परलोक के मार्ग में दिखाई देना सम्भव नहीं है। उसके प्रति तनिक भी वक्रदृष्टि धारण करना अपने कल्याण के प्रति वक्रदृष्टि धारण करने के समान है। अपने तथा औरों के कल्याण के अभिलाषी लोगों को श्री जिनपूजादि अनुष्ठान में स्वयं सम्मिलित होकर अन्य को सम्मिलित करना तथा अपने-पराये का पारमार्थिक कल्याण साधना, यही सच्ची उन्नति का उत्तम मार्ग है।
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