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प्रतिमा की उपादेयता
विश्व के प्रत्येक पदार्थ की कम-से-कम चार स्थितियाँ होती हैं; नाम, आकार, पिंड और वर्तमान अवस्था। वस्तु की वर्तमान भाव अवस्था जिस प्रकार वस्तु का बोध कराती है उसी प्रकार उस वस्तु की भूत और भावी अवस्था, उस वस्तु का आकार तथा उस वस्तु का नाम भी वस्तु का ही बोध कराता हैं।
कार्य-कारण सम्वन्ध
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इस जगत् में प्रत्येक वस्तु का दूसरी वस्तू के साथ किसी न किसी प्रकार का सम्बन्ध होता ही है। ये सम्बन्ध नाना प्रकार के होते हैं। कोई सम्बन्ध कार्य-कारण रूप होता है तो कोई जन्यजनक रूप; कोई स्व-स्वामित्व रूप होता है तो कोई तादात्म्य तथा तदुत्पत्ति रूप होता है।
अग्नि और धुएँ का कार्य-कारण रूप सम्बन्ध है तथा कुम्हार एवं घड़े का जन्य-जनक रूप। मालिक और नौकर का स्व-स्वामित्व रूप, घड़ा और घड़े के स्वरुप का तादात्म्य रूप तथा घड़े और मिट्टी का तदुत्पत्ति रूप सम्बन्ध है। इसी भाँति शब्द एवं अर्थ का तथा स्थापना और स्थाप्य का भी परस्पर सम्बन्ध है जो क्रम से वाच्य-वाचक तथा स्थाप्य स्थापक सम्बन्ध कहलाता है।
जिस प्रकार धुएँ के ज्ञान के साथ इसके कारण रूप अग्नि का ज्ञान भी ज्ञाता को होता है परन्तु उसके कारण के रूप में अग्नि को छोड़कर अन्य किसी वस्तु का ज्ञान नहीं होता अथवा घड़े को देखते ही उसके निर्माता के रूप में कुम्हार का ज्ञान होता है न कि किसी और का अथवा तो उसके उपादान के रूप में मिट्टी का ज्ञान होता है, परन्तु तन्तु आदि का ज्ञान नहीं होता है। इसी प्रकार अग्नि अथवा घड़ा शब्द सुनते ही प्रत्येक को अग्नि और घड़े का निश्चित बोध होता है; परन्तु अन्य किसी पदार्थ का बोध नहीं होता, अथवा अग्नि या घड़े का चित्र देखकर दर्शक को अग्नि और घड़े का ही स्मरण होता है; अन्य किसी पदार्थ का स्मरण नहीं होता है।
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