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को नहीं दिया जा सकता। शिक्षक पर ऐसा दोष लगाना जैसे अनुचित है वैसे ही सदा सावध जीवन जीने वाले भक्त व्यक्ति की भक्ति की क्रिया को सावध कहना भी अनुचित है।
मांसभोजी व्यक्ति की मांसाहार की आदत छुड़वाने के लिए यदि कोई उपकारी उसे वनस्पति आहार की सलाह दे तो केवल इतने पर से ही वनस्पति का सेवन करने वाले अथवा ऐसी सलाह देने वाले को हिंसक मानना केयल मूर्खता ही है। इसी प्रकार यदि कोई वेश्या पतिता बनने का प्रयत्न करे अथया कोई चोर अपनी चोरी का कार्य छोडकर किसी धन्धे पर लगने का प्रयत्न करे तो यह पापी अथवा हिंसक यन जाता है ऐसा कहना जितना निर्युद्धिपूर्ण एवं हास्यास्पद है उतना ही हास्यास्पद यह कहना है कि उपास्य परमात्मा की भक्ति का कार्य हिंसापूर्ण है।
उपास्य के आकार की भक्ति के लिए की जाने वाली हिंसा, भक्ति-निमित्तक हिंसा नहीं है पर वह केवल उपासक के स्वाभाविक हिंसक जीवन की अभिव्यक्ति है। उपासक के स्वाभाविक जीवन में हिंसा समाई हुई है अतः वह जितना समय भक्तिकार्य में देता है उतने समय तक वह इस स्वाभाविक हिंसा से मुक्त रहता है। इतना ही नहीं परन्तु पूर्ण अहिंसत्व की प्राप्ति के लिए अहिंसा धर्म की चोटी पर पहुँचे हुए परम अहिंसक परमात्मा की वह भक्ति करता है और इसके परिणामस्वरुप वह भविष्य में सावद्य से हटकर निरवद्यता की ओर अधिक से अधिक आगे बढ़ता है। अपने जीवन की स्वाभाविक सावद्यता का आरोप, भक्ति अथवा गुण-प्राप्ति के कार्यों पर करने वाला अज्ञानी ही है। इतना ही नहीं वह परमोपास्य की भक्ति के एकमात्र राजमार्ग से स्वयं भी च्युत होता है तथा दूसरों को भी च्युत करता है।
आकार को नहीं मानने की बाते अज्ञानजन्य है नाम-भक्ति या आकार-भक्ति को छोड़कर केवल गुण-भक्ति की बातें करने वाले अथवा नाम-भक्ति को मानकर आकारभक्ति को छोड़ देने वाले उपास्य की भक्ति कर सकते हैं ऐसा मानना केवल आत्मवंचना है। नाम एवं आकार के बिना अरूपी उपास्य अथवा उनके गुणों का ग्रहण सर्वथा असम्भव
नाम, आकार के बोध से उपास्य के गुणों की याद दिलाता है जबकि आकार नाम के आलम्बन बिना उसके साक्षात् गुणों का स्मरण करवाता है। नाम और आकार के जगत् में रहकर नाम एवं आकार की बातों को नकारना वुद्धि का द्रोह है। अपने इष्ट की साकार भक्ति में अविश्वास करने वालों को भी प्रत्यक्ष नहीं तो परोक्ष रूप से अपने इष्ट से सम्बन्ध रखने वाली वस्तुओं के आकार की भक्ति में विश्वास करना ही पड़ता है।
उदाहरणस्वरुप - एक मुसलमान अपने आराध्य की प्रतिमा को सीधी तरह से मानने से इन्कार करता है फिर भी एक छोटी मूर्ति और उसके अंगों की भक्ति के बदले उसके