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परमात्म-पूजा की उपेक्षा से तीन दोषों का प्रगटीकरण
अपूज्य की पूजा से भी पूज्य की पूजा की उपेक्षा अधिक भयंकर - हानिकर है। इस लोक में सर्वाधिक पूजा और सम्मान के पात्र परमात्मा ही हैं, उनकी पूजा की उपेक्षा महामिथ्यात्व का कारण है। परमात्म-पूजा की उपेक्षा से आत्मा में तीन दोषों का प्रगटीकरण होता है
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1. गुण का अनादर - जिनेश्वर की पूजा की उपेक्षा करने वाला गुण का अनादर करता है। जिस प्रकार गुण- बहुमान का अध्यवसाय अवंध्य पुण्यबंध का कारण है, उसी प्रकार गुण के अनादर का अध्यवसाय सानुबंध तीव्र अशुभ कर्म के बंध का हेतु है ।
गुणी के अनादर, आशातना और हीलना का अध्यवसाय, मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति (70 कोड़ाकोड़ी सागरोपम) के बंध का कारण है।
हिंसादी पापाचरण की अपेक्षा गुणी का अनादर करने वाला अत्यधिक क्लिष्ट कर्मप्रकृति का बंध करता है। जिनपूजा के प्रति अरुचि से गुणीजन के प्रति अनादर भाव बढ़ता है।
परमात्मा कृतकृत्य होने पर भी भव्य जीवों पर उपकार करते हैं, अतः पूज्यतम हैं। देव-देवेन्द्र आदि भी परमात्मा की पूजा करते हैं, फिर भी उनकी पूजा की उपेक्षा करना महामोह का ही कारण है।
2. कृतघ्नता - जिनपूजन की उपेक्षा करने वाला कृतघ्न बनता है। वह व्यक्ति परमात्मा के अनन्त उपकारों की अवगणना करता है। शास्त्र में कहा गया है कि मदिरापान, हिंसा, झूठ, चोरी आदि के पापों की प्रायश्चित्त आदि द्वारा शुद्धि हो जाती है, किन्तु कृतन व्यक्ति की शुद्धि नहीं होती है अर्थात् वह प्रायश्चित्त के लिए भी अयोग्य है।
3. अहंकार - अहंकार एक भयंकर कोटिं का दुर्गुण है। अहंकार हृदय का उन्माद है। अहंकार से आत्मा भयंकर नीच गोत्र का बंध करती है, जिससे करोड़ों भवों में भी मुक्त नहीं बनती है।
परमात्म-पूजन की उपेक्षा से अहंकार का पोषण होता है । अहं तो सर्व अनर्थों का मूल है । त्रिलोकनाथ की उपेक्षा से बढ़कर और कौन सा भयंकर पाप हो सकता है ?
ये तीन दोष आत्मा की भयंकर बरबादी करने वाले हैं। अतः मुमुक्षु आत्मा को कभी परमात्म-भक्ति की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये ।
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