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परमात्म-पूजन से । तीन गुणों की सिद्धि
देवाधिदेव वीतराग परमात्मा की आदर-बहुमान तथा शास्त्रोक्तविधि पूर्वक पूजा करने से हमें तीन गुणों की सिद्धि होती है, जो निम्नानुसार हैं -
1. गुण बहुमान - गुणानुराग, गुणप्राप्ति का अमोघ साधन है। व्यक्ति के हृदय में जिस वस्तु के प्रति तीव्र प्रेम होता है, वह वस्तु उसे अवश्य मिलती है। मुमुक्षु आत्मा को गुण चाहिये और इन गुणों के स्वामी तीर्थंकर परमात्मा ही हैं। अतः तीर्थंकर परमात्मा की पूजाभक्ति से उनमें रहे अनन्त गुणों का बहुमान होता है और उस बहुमान के फलस्वरूप भक्तात्मा को भी उन गुणों की प्राप्ति होती है। ।
अनन्त गुणी जिनेश्वर देव की पूजा का अध्यवसाय भी अनन्त फल को देने वाला है तो फिर पूजन से अनन्त लाभ हो, इसमें आश्चर्य ही क्या है?
___2. कृतज्ञता - अपने उपकारी के उपकार को नहीं भूलना ‘कृतज्ञता' है। जिनेश्वर परमात्मा का अपने पर अमाप उपकार है। माता-पिता, विद्यागुरु आदि का उपकार भी दुष्प्रतिकार है और सद्धर्मगुरु का उपकार तो और भी अत्यन्त दुष्प्रतिकार है। उन सब से बढ़कर तीर्थंकर का उपकार है।
माता, पिता, विद्यागुरु व धर्मगुरु के उपकार का बदला कदाचित् इस जन्म अथवा अन्य जन्म में, उन्हें धर्मबोध करने के प्रसंग से चुका सकते हैं, किन्तु अरिहन्त परमात्मा के उपकार को चुकाने का तो कोई मार्ग ही नहीं है, क्योंकि वे तो कृतकृत्य बन चुके हैं और उनका उपकार भी अनन्त गुणा है।
___ यदि तीर्थंकर परमात्मा ने केवलज्ञान की प्राप्ति के बाद तीर्थ की स्थापना नहीं की होती तो धर्मगुरु भी उपकार करने में असमर्थ रह जाते, अतः तीर्थंकर परमात्मा तो परम गुरु हैं। वे अज्ञान अन्धकार को दूर करने वाले हैं। एक जीवनदान से भी उनका दान बढ़कर है, क्योंकि वे तो अमर ही बना देते हैं।
जिनेश्वर परमात्मा ने 'पुनः कभी मरना न पड़े' ऐसा अमरता का मार्ग बतलाया है, उस मार्ग का अनुसरण कर आज तक अनन्त आत्माएँ अजर-अमर पद को प्राप्त हुई हैं। अतः उनके उपकार का कोई माप नहीं है। वे तो त्रिजगत्शरण हैं, त्रिभुवनबधु हैं, अकारणवत्सल हैं, अचिंत्य चिंतामणि हैं,
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