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________________ वि.सं. 2035 में इस पुस्तक का जसराजजी सिंधी द्वारा हिन्दी में अनुवाद किया गया था और जिनदत्त सूरि जैन दादावाड़ी, अजमेर की ओर से इस कृति का हिन्दी में प्रकाशन हुआ था। आज उसकी भी नकलें उपलब्ध नहीं हैं। परोपकारपरायण पूज्य पंन्यासप्रवर श्री वज्रसेन विजयजी गणिवर्य श्री की सत्प्रेरणा एवं परम पूज्य तपस्वी, सेवाभावी मुनिप्रवर श्री जिनसेन विजयजी म.सा. की सहयोगवृत्ति से इस अलभ्य पुस्तक का पुन: संस्करण- परिमार्जन, नवीन मेटर का हिन्दी अनुवाद और सम्पादन किया गया है। हिन्दी प्रथम आवृत्ति में भाषा सम्बन्धी भी जो भूलें थीं; उन्हें भी परिमार्जित किया गया है। कहीं-कहीं लेखों के क्रम उनकी वाक्यरचना एवं भाषा आदि में भी आवश्यक परिवर्तन किया है। भाषाशैली को सरल व स्पष्ट करने का भी प्रयास किया गया है, जिससे जटिल पदार्थों का सुगम बोध हो सके। प्रस्तुत सम्पादन में स्वर्गस्थ पूज्यपाद गुरुदेव श्री के अभिप्राय को यथावत् बनाए रखने का पूर्ण ध्यान रखा गया है - फिर भी छद्यस्थतावश कहीं स्खलना रह गई हो तो उसके लिए क्षमायाचना करता हूँ। प्रस्तुत कृति का यदि मध्यस्थवृत्ति से पठन-पाठन और अध्ययन किया जाएंगा... तो अवश्य ही सन्मार्ग की प्राप्ति होगी। सभी आत्माएँ वीतराग- प्ररूपित सन्मार्ग की उपासिका बनकर अपना आत्मश्रेयः सिद्ध करें, इसी शुभेच्छा के साथ · सेठ मोतीशा जैन उपाश्रय, अध्यात्मयोगी पूज्यपाद पंन्यासप्रवर भायखला, बम्बई - 400 027. श्री भद्रंकर विजयजी गणिवर्थ शिष्याणु पोष दशमी, 2053 मुनि रत्नसेन विजय दि. 4-1-1997 ११
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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