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________________ णि?रययणमेयं। देवाणं भंते? संजयासंजयाति यत्तव्यं सिया? गोयमा। णो तिणढे समढे, असभूयमेयं देवाणं, से किं खाति णं भंते! देवाति यत्तव्यं सिया? गोयमा। देवाणं नो संजयाति यत्तव्यं सिया।" इससे सिद्ध होता है कि देवताओं को असंयती नहीं कह सकते हैं और ऐसा कोई बोले तो वह महानिष्ठुर वचन कहलाता है। देवताओं को संयति कहे तो अभ्याख्यान लगता है और देवों को संयतासंयति कहें तो असद्भूतवचन कहलाता है अतः देवताओं को 'नो संयति' कहना ही जिनेश्वरदेवों की आज्ञा है। 'नो संयति' का अर्थ अधर्मी करोगे तो प्रश्न खड़ा होगा देवताओं को असंयति (अधर्मी) कहने का निषेध क्यों किया? 'नो धम्मिआ' और 'नो संयति' का अर्थ 'धर्मी नहीं' 'संयति नही' ऐसा करेंगे तो आज्ञाभंग के दोष के बावजूद दूसरे भी दोष आ जाएंगे। सूत्रों में स्थान-स्थान पर 'नो कषाय', 'नो इन्द्रिय', 'नो सन्नः', 'नो आगम' इत्यादि शब्द आते हैं, उनका अर्थ अकषाय, अनिन्द्रिय अनागम इत्यादि करोगे तो शास्त्र विरुद्ध अर्थ हो जाएंगे। ऐसे स्थान पर 'नो' का अर्थ सर्व निषेध नहीं किन्तु देश निषेध करना चाहिए। इसी न्याय से 'नो संयत' आदि पदों का अर्थ अधर्मी अथवा असंयति न कर ईषद्धर्मी, ईषद्संयमी आदि करना चाहिए। ___श्री आचारांग, श्री दशाश्रुतस्कन्ध तथा श्री ज्ञातासूत्र में भी कहा है कि लोकान्तिकदेव अनन्त काल से ही.स्वयंबुद्ध तीर्थंकर परमात्मा को दीक्षाकाल का स्मरण कराते हुए कहते हैं - 'हे भगवन्! जगत् की हितकर तीर्थ प्रवर्ताओ।' ऐसे विवेकी देवताओं को कौन अधर्मी कह सकेगा? श्री दशर्यकालिक सूत्र में देवताओं को मनुष्य की अपेक्षा महाविवेकी और बुद्धिमान् कहा है। धम्मो मंगल मुक्किटुं, अहिंसा संजमो तयो। देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सथा मणो ।। अर्थ - जिसका मन धर्म के विषय में सदा प्रवर्तमान है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं (तो फिर मनुष्य करें, उसमें क्या आश्चर्य है!) श्री ठाणांग सूत्र में देवतागण किस प्रकार शुद्ध भावना कर, अपनी आत्मा की निन्दा करते हैं और अपने पूर्व जन्म के गुरु का कितना अधिक सम्मान करते हैं, वह नीचे के पाठ से ख्याल में आ जाएगा - 'अहुणोययन्ने देवे देवलोगेसु दिव्येसु कामभोगेसु अमुच्छिए अगिद्धे, अगढिए अणज्झोदयन्ने, तस्स णं एवं भवइ अत्यि स्खलु मम माणुस्सए भवे -160
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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