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________________ किये'' ऐसे शास्त्र के बिल्कुल विपरीत अर्थ करते है, जो असत्य है। ___ भावनिक्षेप से साक्षात् तीर्थंकर को वन्दन-पूजन करने का जो फल है तथा सम्यक्त्व और ज्ञान सहित चारित्र पालने का जो फल सूत्र में बताया है, वही फल श्री जिनप्रतिमा के वन्दन पूजन का कहा है। यावत् मोक्षप्राप्ति तक का बतलाया है। (21) श्री दशाश्रुतस्कन्ध के दसवें अध्ययन में कहा है कि श्री महावीर स्वामी राजगृही नगरी में पधारे तव वन्दन करजे जाने के लिए चेलणा रानी श्रेणिक राजा के पास आई और कहने लगी - (वह पाठ 'निम्नांकित है). "चिल्लणादेवी एवं ययासी तं महाफलं देवाणुप्पिये। भगयं महावीर यंदामो, णमंसामो सम्माणेमो, कल्लाणं मंगलं चेइयं पज्जुवासेमो तेणं इह भये य परभये य हियाए सुहाए स्वमाए निस्सेसाए आणुगामियत्ताए भविस्सहा" भावार्थ - निश्चित! हे चिल्लणादेवी! उसका महाफल होता है। किसका? तो कहते हैं कि हे देवानुप्रिय! श्रमम भगवान श्री महावीर स्वामी को वन्दन करने से, नमस्कार करने से, सत्कार करने से, सम्मान करने से कल्याणकारी मंगलकारी देव सम्बन्धी चैत्य (जिनप्रतिमा) की तरह पर्युपासना करने से इस भव और परभव में हित के लिए, सुख के लिए, क्षेम के लिए, निःश्रेयस मोक्ष के लिए होता है तथा भवोभव में साथ में आने वाला होता है। (22) वैसा ही पाठ 'उययाई सूत्र' में चम्पानगरी के कोणिक राजा के अधिकार में आता है। साक्षात् भगवान को वन्दनार्थ जाते समय के वर्णन का पाठ अनेक स्थलों में आता (23) श्री रायपसेणी सूत्र में सूर्याभदेव के अधिकार में कहा है . उसका पाठ निम्नलिखित है - 'तएणं तस्स सूरियाभस्स देवस्स पंचविहाए पज्जयन्तीए पज्जत्तिभावं गयस्स समाणस्स इमेयारूये अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था-किं मे पूटियं करणिज्जं? किं मे पच्छा करणिज्जं? किं मे पूट्विं सेयं? किं मे पच्छा सेयं? किं मे पूटियंपि पच्छा यि हियाए सुहाए खमाए णिस्सेसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ?'
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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