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________________ हजम कर जाते हैं? दुष्ट लोग उनकी मूर्ति को कैसे खण्डित कर जाते हैं? और यदि भगवान सर्वज्ञ है तो उनकी मूर्ति को धरती से खोदकर क्यों निकालनी पड़ती है? शासनदेव यह कार्य क्यों नहीं करते? उत्तर - यह प्रश्न ही मुर्खतापूर्ण है। श्री वीतराग के गुणों का आरोपण कर भक्ति के लिए जड़ वस्तु से बनी मूर्ति जमीन में से अपने आप क्यों नहीं निकलती अथवा उसके अलंकार आदि को चोरी करते हुए पापी लोगों को शासनदेवता क्यों नहीं रोकते? इसका उत्तर यह है कि जड़ स्थापना में यह शक्ति कहाँ से आवे? तथा शासनदेव प्रत्येक प्रसंग पर आकर उपस्थित हो जावें, ऐसा नियम कहाँ हैं? भगवान श्री महावीरदेव के जीवनकाल में उनकी सेवा में लाखों देव उपस्थित रहते थे, फिर भी मंखलि पुत्र गोशाला ने भगवान पर तेजोलेश्या फेंकी और उससे उन्हें खून के दस्त की व्याधि हुई। उस समय शासनदेवों ने कुछ नहीं किया, इससे क्या उनकी भक्ति में अन्तर आ गया? कितने ही भाव ऐसे होते हैं कि जिनको देवता भी नहीं बदल सकते। जिस समय जो होना है वह किसी काल में भी मिथ्या नहीं होता। स्वयं श्री तीर्थंकर महाराजा से दीक्षा ग्रहण करके अनेक स्त्री-पुरुष उनके विरोधी हुए हैं, अनेक प्रकार के पाखंडी मत उन्होंने स्थापित किये हैं तथा भगवान की निन्दा की है, तो क्या सर्वज्ञ भगवान इस बात को नहीं जानते थे कि ये पाखण्डी चारित्र की विराधना करेंगे और मिथ्यात्व का प्रचार करेंगे? सब कुछ जानते थे तो फिर उन्हें दीक्षा क्यों दी? केवल इसलिए कि ऐसे भाविभाव आदि को भी ये तारक जानते थे। वर्तमान में श्री वीतराग का धर्म अति अल्प प्रमाण में रह गया है। उसमें भी अनेक प्रकार की भिन्न-भिन्न शाखाएँ पड़ी है तथा चलनी की तरह छेद हो गये हैं। मिथ्यात्व एवं दुराग्रह के अधीन व्यक्ति उत्सूत्र भाषण करने में कुछ बाकी नहीं रखते। तब फिर ऐसे निन्दक तथा प्रतिक्रियावादियों को रोककर शासनदेव सत्यमार्ग का उपदेश क्यों नहीं देते? लोगों को महाविदेह क्षेत्र में श्री सीमन्धर स्वामी के पास ले जाकर उनके दर्शन कराकर शुद्ध धर्म का प्रतिबोध क्यों नहीं करवाते? अतः देवताओं के हाथों से भी जो-जो चमत्कारी कार्य होने लिखे होते हैं, वे ही होते है, उनसे अधिक नहीं, ऐसा मानना चाहिए। अभी हाल में भी बहुत सी मूर्तियाँ, जैसे कि श्री भोयणीजी में श्री मल्लिनाथ भगवान तथा श्री पानसर में श्री महावीर स्वामी भगवान आदि के लिए शासनदेव स्वप्न में आकर अनेक प्रकार के चमत्कार बताते हैं। असंख्य वर्षों से मूर्तियों की रक्षा भी करते हैं। इसके अतिरिक्त कई उपसर्गादि का निवारण भी करते हैं और बहुतों का नहीं भी करते हैं, क्योंकि हर बार शासनदेव सहायता करें, ऐसा नियम नहीं है। ___ आज के युग में कई मुर्ख लोग श्री जिनमन्दिर में चोरी आदि करने का दुष्ट कर्म करते -96
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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