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________________ -- कुछ लोग वृहत्कथा के आधार पर पाणिनि की शिक्षा पाटलिपुत्र में हुई मानते हैं. और कात्यायन को पाणिनि का सहाध्यायी मानते हैं, किन्तु ये दोनों ही बातें सर्वथा असंगत प्रतीत होती हैं। उस जमाने में शलातुर = लाहुर से उठकर एक बालक पढ़ने के लिए सैकड़ों कोस की दूरी पर स्थित पाटलिपुत्र = पटनानगर में जाय-यह बात संभव नहीं जान पड़ती, विशेषतः तब जब कि समीप में ही 'ता"शिला' जैसा विशाल विश्वविद्यालय रहा हो और वही प्रदेश उस समय विद्याकेन्द्र मी रहा हो । ऐतिहासिकों.का निश्चित मत है कि अवश्य ही पाणिनि की शिक्षा तक्षशिक्षा में ही हुई थी, बाद में अपने शान की वृद्धि के लिए अथवा अपने विचारों के ..प्रचार के अभिप्राय से वे अन्यत्र गये हो और पाटलिपुत्र में उनके प्रणीत शास्त्र की परीक्षा हुई हो, यह दूसरी बात है। ___ 'प्राचार्य पाणिनि अत्यन्त संपन कुल के थे, उन्होंने अपने शन्दानुशासन को पदनेवालों के लिए भोजन आदि प्रबन्ध भी अपनी ओर से कर रखा था'। इस बात को युधिष्ठिर ची मीमांसक महामान्य के 'पोदनपाणिनीयाः' उदाहरण से सिदध करते हैं। प्रतीत होता है कि भगवान् पाणिनि के कुलपतित्व में एक बहुत बड़ा प्राचार्यकुल अथवा विद्यापीठ रहा होगा, जिसमें हजारों विद्यार्थी अध्ययन करते होंगे, किन्तु महान् खेद का विषय है कि इतने बड़े विश्व-विख्यात उद्भट विद्वान् का जीवनहत्तान्त प्रामाणिक रूप में कुछ भी उपलब्ध नहीं है। जो भी कुछ उपलब्ध है वह सब अनुमान और अनुश्रुतियों पर आधारित है। किंवदन्ती है, कि उनकी मृत्यु एक सिंह के द्वाग हुई-सिहो व्याकरणस्य कत्तुरहरत्प्राणान् प्रियान् पाणिनेः।" (पञ्चतन्त्र)। . समय . पाणिनि के समय के संबन्ध में कोई स्पष्ठ प्रमाण उपलब्ध न होने के कारण कुछ अनुमानों के आधार पर ही विचारक लोग निर्णय करते हैं ! यह निर्णय भी सबका एक नहीं है। कुछ पाश्चात्य तथा तदनुयायी भारतीय विद्वान् पाणिनि का समय गौतम बुद्ध के बाद मानते हैं। "कुमारः श्रमणादिभिः" इस सूत्र में श्रमण शब्द को वे उद्धृत करते हैं और कहते हैं कि यह शब्द बुद्ध के बाद ही · बौद्ध मिक्षुओं के लिए प्रयुक्त हुा । वहीं से पाणिनि ने लिया जब कि बुद्ध का समय ईसवी पूर्व छठी शताब्दी है तो बौदधमत-प्रचार के अनन्तर दो सौ वर्ष बाद अर्थात् ई० पू० चौथी शताब्दी. पाणिनि का समय माना जा सकता है। दूसरा प्रमाण वे बोग यह देते हैं कि “इन्द्र-वलय भवशर्वकद-मृड-यव-यवन-मातुलाचार्या
SR No.006148
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri
PublisherMotilal Banrassidas Pvt Ltd
Publication Year1981
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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