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________________ २७ हल्सन्धिप्रकरणम् मलामानिघिसूत्रम् ८३ नपरे नः ८।३।२७ । नपरे हकारे मस्य नो वा । 'किन्हुतः, किंगुतः । গুয়ামুল্য ८४ डः सि धुट ८।३।२६ । डात्परस्य सस्य धुड़ वा। टिकिरायन्तानयव विधानपरिभामा सूत्रा ८५ आद्यन्तो टकितो। १।१। ४६ । टिकितौ यस्योक्तौ तस्य कमादायन्ताव्यवौ स्तः । षट्त्सन्तः, षट्सन्तः। • ८६ लोः कुक टुक शार।३। २८ । वा स्तः (चयो द्वितीयाः शरि पौष्करसादेरिति वाच्यम्) "पाषष्ठः, प्राष्टिः, प्रापष्टः । सुगषष्ठः, सुगण्टषष्ठः सुगणपष्टः । ८७ नश्च ।३।३०। निधिसूत्र नान्तात्परस्य सस्य धुड़वा । 'सन्त्सः, सन्सः। गागमनिविसेगम ८८ शि तुक ८।३॥३१॥ प्रसन्ना) १-किम् + नुते । २-षड् + सन्तः, “७४ खरि च" इति चवम् षट्सन्तः । 1-क-च-ट-त-पामित्यर्थः । ४-ख-छ-ठ-थ-फा इत्यर्थः ।.५-प्राङ् षटः । ६-कष संयोगे क्षः । ७-सुगण + षष्ठः । ८-सन्+सः सनस्सः, एवं विद्यापिन् + सहस्व, विद्यापिनत्सहस्व, छात्रान् + स्वापय - छात्रान्त्स्वापय इत्यादि । ८३-नपरक हकार परे रहते म् को में होता है विकल्प से । ८४-ड से परे स को धुट् का श्रागम होता है विकल्प से । ८५-टित् कित् जिसको कहे जायें क्रम से उसके आदि और अन्त अययव होते है; अर्थात् टित् आदि, कित् अन्त । कार णकार को कुक और टुक का आगम होता है शर् परे रहते क्रम से । (वा०-चयों को द्वितीय वर्ण होते हैं शर् परे रहते पौष्करसादि ऋषि के मत में ) । ८७-नान्त से परे स को धुट का श्रागम होता है विकल्प से । -पदान्त नकार को शकार परे रहते तुक् का श्रागम होता है विकल्प से ।
SR No.006148
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri
PublisherMotilal Banrassidas Pvt Ltd
Publication Year1981
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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