________________
प्रश्नपत्रसग्रहः प्रश्नोत्तरनिदर्शनसहितः
तत्रादौ परीक्षा-शिक्षा सूत्राणि "शृण्वन्तु प्रियशिशवः ! श्रुत्वा चैवोपधार्यतां हृदये। कथनैरलं गुणानां "स्तुतिवाङ् न रोचते सद्भयः" ॥१॥ श्रीगुरुमुखतो ग्रन्थाः साद्योपान्तं पुरैव पठनीयाः” । को जाने किं पृच्छेद "भिन्ना रुचिर्हि मनुष्याणाम्" ।। २।। अपरिचितदेशकालः सुविदितशास्त्रोऽपि पण्डितो लोके । पूर्ण फलं न लभते "चेष्टताऽतो यथाकालम्" ॥३॥ नेयाऽयोलेखनिका परिचितपूर्वा परीक्षिता सम्यक् । सा चैव भवति साधुः "सुपरिचितो नैव वञ्चयते" ॥४॥ आदाय प्रश्नदलं भूयोऽभिदृश्यतां सर्वम् । सञ्चिन्तितं हि सुचिरं "स्मृतिमधिरोहति पुरा दृष्टम्" ॥५॥
परीक्षा-शिक्षासूत्र-तात्पर्यव्याख्या ( हिन्दी में ) १ - प्रिय छात्रवर्ग! ध्यान से सुनो और सुनकर हृदय में निश्चय कर लो। हम अपने मुह से शिक्षा सूत्रों के गुणों को क्या प्रशंसा करें। सज्जनों को प्रात्मश्लाघा रुचिकर नहीं हुआ करती । २-परीक्षार्थी के लिये आवश्यक है कि परीक्षा-समय से पहिले समस्त पाठ्य-ग्रन्थों को श्रीगुरु-मुख से आदि से अन्त तक पढ़ ले। कोई प्रकरण पढ़ लिया, कोई छोड़ दिया यह उचित नहीं । न जाने परीक्षक कहाँ से पूछ मारे । सबकी रुचि भिन्न भिन्न होनी स्वाभाविक है। ३-परोक्षार्थी को देश-काल का पूरा ध्यान रखना चाहिये, देश काल से अपरिचित शास्त्रज्ञ विद्वान् भी पूरा फल नहीं प्राप्त कर सकता । ४-परीक्षाभवन में लेखनी अपनी तो ले जानो हो होती है, किन्तु लेखनी--( कलम या होल्डर ) वही साथ रहनी चाहिये जिससे प्राप पहिले प्रायः मिखा करते है और जिसके ठीक चलने में कोई सन्देह नहीं है, पूर्व परिचित से प्रायः वजना का भय नहीं हुमा करता।
५--प्रश्न न मिल जाने पर उसे ध्यानपूर्वक मादि से अन्त तक पढ़ो, फिर पड़ो, कुछ देर तक सब पर्यामोचन कर डालो, ऐसा करने से समस्त पढ़ा हुमा विषय