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लघुसिद्धान्तकौमुद्याम
अथ विसर्गसन्धिः
भाषार्थः
प्रयोगाः
सू० १०३
विष्णुस्त्राता -श्रीविष्णु, भगवान् रक्षक हैं ( एवं विवृतौ )
छात्र स्तिष्ठति - विद्यार्थी ठहरता है । गौश्चत - गौ चरती है ।
कृष्णश्छिनत्ति - भगवान् श्रीकृष्ण (जन्मबन्ध) काट देते हैं ।
सू० १०४
हरिश्शेते - भगवान् श्रीहरि सो रहे हैं । ( एवं विवृतौ )
छात्रा सन्ति - विद्यार्थी ( उपस्थित) हैं राष्ट-छः रस हैं ।
सू० १०६
शिवोऽर्थः - भगवान् शिव पूजनीय हैं। ( एवं विवृतौ) शुद्धोऽहम् - मैं शुद्ध स्वरूप हूँ । बुद्धोऽस्मि - मैं बुद्ध स्वरूप हूँ । छात्रोऽयम् - यह विद्यार्थी
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सू० १०७
शिवो वन्द्य-भगवान् शिव वन्दनार्थ हैं । ( एवं विवृतौ )
रामो वदति - भगवान् श्रीराम कहते हैं । छात्र गच्छति - विद्यार्थी जाता है। कृष्णो जयति - भगवान् श्री कृष्णचन्द्र की जय !
काको डीयते - कोश्रा उड़ता है । कर्णो ददाति -- राजा कर्ण दान देते हैं।
प्रयोगाः
भाषार्थः
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व्यासो ब्रूते - भगवान् वेदव्यास कथा कहते हैं ।
सू० १०८ देवा इह--देवता यहाँ (श्रावें) । ( एवं विवृतौ )
छात्रा आगच्छन्ति-विद्यार्थी श्राते हैं । वीरा उत्सहन्ते - - वीर पुरुष उत्साह करते हैं। देवा एते- ये देवता हैं ।
धार्मिका वर्धन्ते - धार्मिक लोग बढ़ रहे हैं। भक्ता भजन्ति--भक्त (भगवान्) को भजते हैं ।
हया हेषन्ति - घोड़े हिनहिनाते हैं । - याशिका यान्ति-- याज्ञिक लोग जाते हैं । बाला रमन्ते--: -- बालक खेलते हैं । विप्रा दयते ब्राह्मण दया करते हैं।
सु. १०६
• भो देवा:- ह देवताओं !
भगो नमस्ते - हे भगवान्! आपके प्रति नमस्कार है।
धो याहि श्ररे ( पापी ! ) दूर हट ।
सू० ११० अहरहः--प्रतिदिन | अहर्गणः--दिनसमूह अर्थात् संवसर । ( एव विवृतौ
श्रर्भाति-दिन सुहाता है ।
| प्रातरत्र - प्रातः काल यहाँ (जाना) [ भ्रातर्देहि---भ्राता जी (यह मुझे) दो ।