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उपदेश-प्रासाद
भाग १
४३६
निर्भर्त्सना करती है, क्रीड़ा करती है और विषाद से युक्त करती है । मनुष्यों के दया से युक्त हृदय में प्रवेश कर यें वाम - नयनाएँ (स्त्रियाँ) क्या-क्या आचरण नहीं करती ?
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इस प्रकार से सोचकर और तृण के समान मालव के राज्य का त्याग कर राजा ने व्रत ग्रहण किया । योगी सन्यास का व्रत लेकर पृथ्वी के ऊपर पर्यटन करते हुए किसी नगर के उद्यान में एक तापस के स्थल पर गये । तापस को नमस्कार कर आगे बैठे । उसके अनादर करने पर राजा ने सोचा कि निश्चय ही यह मायावी है, में गुप्त रीति से इसकी माया को देखता हूँ । राजा रहस्य में स्थित हुआ । रात्रि में उस वनवासी योगी ने स्व शिखा से एक डिब्बी निकालकर उसे खोली और मध्य में जलांजलि डाली । उसके प्रभाव से डिब्बी में से एक सुरूपवाली स्त्री बाहर निकली। उसके साथ भोगों को भोग कर
वह सो गया । स्त्री ने स्व चोटी में रखी हुई डिब्बी में से मंत्रित कीये हुए जलांजलि के छांटने से देवकुमार को प्रकटित किया । उसके साथ विलास कर पुनः उसे डिब्बी में छिपाकर उस डिब्बी को अपनी चोटी में स्थापित की । निद्रा रहित हुए योगी ने भी वैसा किया । उस सर्व चरित्र को देखकर राजा ने सोचा कि
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पृथ्वी पर कोई मत्त हाथी कुंभ के दलन में शूर है, कोई प्रचंड सिंह के वध में भी दक्ष होते हैं, किंतु मैं बलवंतो के आगे बल से कहता हूँ कि काम के गर्व को दलन करने में विरल ही मनुष्य होते हैं ।
इस प्रकार से विचार कर वह श्रीपुर के उद्यान में निद्रा से वृक्ष के नीचे सोया । इस ओर उस नगर का अपुत्रक राजा मृत हुआ । मंत्रियों ने पाँच दिव्य कीये । वें राजा के समीप में आये । राजा ने उठकर उन मंत्री आदियों के आगे कहा- मुझे राज्य से प्रयोजन नहीं हैं । तब सभी नगरवासियों ने कहा कि- कृपा से आप हमको जीवित