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________________ ३६६ उपदेश-प्रासाद - भाग १ पर स्थित जलायें हुए बीज के उगने के समान है, उससे अकुशल पुरुषों के द्वारा शोक से व्यर्थ ही यह आत्मा क्लेश को प्राप्त करायी जा रही है। ___ इस प्रकार से उपदेश देकर राजा ने पूछा कि- कौन आया है ? गुणश्री ने कहा कि- यह वामदेव नामक मित्र है । राजा के द्वारा कुबेर का वृत्तांत पूछने पर उसने कहा कि- हे देव ! यहाँ से भृगुपुर में जाकर पाँच-पाँच सो पुरुषों से युक्त पाँच सो जहाजों से अन्य तट को प्राप्त किया । वहाँ पर चौदह करोड़ स्वर्ण का लाभ हुआ । वहाँ से वापिस लौटनेवालों के साथ ही पाँच सो जहाजों को प्रतिकूल वायु ने विषम पर्वत के वलय संकट में गिराया । पूर्व से ही किसी के पाँच सो जहाज वहाँ पर थें । श्रेष्ठी उनके नहीं निकलने से खेदित हुआ । इसी बीच नाव में चढ़ा हुआ कोई नाविक आया और उसने कहा कि- तुम निकलने के उपाय को सुनो यहाँ समीप में पंचशृंग द्वीप है । वहाँ पर सत्यसागर राजा है। एक बार शिकार के लिए आये हुए उसने सगर्भिणी हिरणी को मारा। हिरण भी उस दुःख से मृत हुआ । यह देखकर सत्यसागर ने अमारि पटह बजवाया । आज पूर्व में भेजे हुए तोते के मुख से तुम्हारी आपदा को जानकर मुझ नाव के स्वामी नाविक को भेजा है । इस पर्वत के ऊपर भाग में द्वार है । उसमें से प्रवेश कर पर्वत के अन्य पास में जाया जाता है । वहाँ उज्जड़ नगर है । उस नगर के जिन-चैत्य में जाकर पटह बजाया जाएँ तो उसके शब्द से भय-भीत हुए सभी भारंड पक्षी उड जायेंगें, तब उनके पंख के वायु से नाव मार्ग में गिरेंगें । तत्पश्चात् वहाँ जाने में अनिच्छुक अन्य लोगों को देखकर दयावान् कुबेर ही गया । वहाँ जाकर उसने नाविक का कहा किया । हजार जहाज निकल गये और क्षेम से भृगुपुर में प्राप्त हुए । उससे आगे मैं कुबेर के स्वरूप
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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